Sunday, 8 June 2014

ग़ज़ल -40 मेरी चाहत में














मेरी चाहत में रही होगी तीव्रता नहीं।
वरना कहो तो कहाँ वो है भला बसता नहीं।। 

उसके दीदार को तरसता है मन मेरा। 
मौजूद हर जगह मगर वो है मिलता नहीं।। 

कायनात की खातिर उठाता हूं हाथ मगर ।
दुआओं में असर मेरी कुछ तो दिखता नहीं।। 

थक गया हूँ पुकार-पुकार के नाम उसका। 
जुबां शायद मेरी दिल कभी धड़कता नहीं।।

जाने कैसी दुनिया में रहते हो "उस्ताद" तुम।
चलन जमाने का तुझमें दिखाई पड़ता नहीं। 

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