Tuesday 24 June 2014

ग़ज़ल- 42 कभी हां में ना तो कभी





कभी हाँ में ना तो कभी ना में हाँ छुपा होता है। इश्के फ़लसफा हकीकत में तो निष्काम होता है।।

यूं तो कनखियों से निहारा करते हैं वो हमें अक्सर।
कहते हैं मगर प्यार किस परिंदे का नाम होता है।।

तंग नज़रों से प्यार को बाँचने वाले नादान लोगों।
सच्चे प्यार का हरेक हरफ़* खुदा का ईनाम होता है।।*शब्द

वो आएं या ना आएं,घर पर कभी मेरे रूबरू।
हर हाल नज़र मेरी,अक्स उनका आम होता है।।

यूं पाकीजगी से खिलता है प्यार का हरेक  रिश्ता।
रूहानी प्यार तो "उस्ताद" जुदा पैगाम होता है।।

No comments:

Post a Comment