Monday, 30 June 2014

भूत और आदमी

उसका चेहरा न फक पड़ा                                                            
न उसे कोई गिला हुआ
जबकि यह सब उसके साथ
होना ही चाहिए था।
उसने मेरा क़त्ल किया था
पर वो मुस्कुराता
राम-राम  करता बोला
भूत भैय्या भले-चंगे तो हो?
भूतों की लाइफ
एन्जॉय तो कर रहे हो?
मैंने कहा आप बड़े बेशर्म हैं
मार कर भी मुझे चैन नहीं पाते हैं।
वो हंसी को थोड़ा और घोंटते
आँखों में आँखें डाल बोला
जनाब मरों को मारा कैसी शर्म
मरे पर दो लात से कैसा फरक                                                                                          
तुमको महंगाई ने मारा
तुम चुप रहे
तुमको लीडरों ने धमकाया
तुम खामोश रहे
तुमको पुलिस ने लतियाया
तुम चुपचाप सहते रहे
और जब मैंने कायदे से तुमको
मार दिया,या कहो उद्धार किया
तो तुम उलटे मुझ पर ही
अकड़ते,उबलते फिर रहे हो।
अरे जनाब कहाँ तो अहसान मानते
वसीयत मेरे नाम कर जाते।                                              
देखो तिल -तिल मरने से बचाकर
मोैत के घाट एक बार में  उतार दिया।
सोचो,क्या ये नेक काम तुम
भला कहीं खुद कर पाते।
अरे लल्लूलाल तुम तो
थोड़ा रो-धो के,खुद पर तरस खाके
फिर पिसने पर मुस्तैद हो जाते।                                                                                                                                                                                 

हमने इतना सुना तो उन्हें
झट से गले लगा लिया।
हमने कहा देखिये गुरूजी
हम नादान आपकी महिमा क्या समझते
अब तो दक्षिणा में यही हैं कर सकते
कि आपको भी मौत के घाट उत्तर देते हैं।
वो इस बार चौंका और संजीदा भी हुआ
फिर नम्र लहज़े में कहा
देखो अब तुम मर के भूत हो गए हो
अब तुम कहाँ मुझे मार सकोगे।
दरअसल भूतों के प्रधान
और आदमियों के प्रधान में
एक्ट,"एक्स-एक्स" -४२० के तहत
अपने मूलभूत गुणों का                                                                                                
आपस में इंटरचेंज हो गया है.
सो अब हर आदमी, भूत
और हर भूत, आदमी की तरह
सोचेगा,समझेगा और काम करेगा।
वैसे ये सब टॉप-सीक्रेट है
पर तुमको बता रहा हूँ।
और हाँ ,एक बात और
भूतों के हजार प्रलोभन पर भी
कुछ बाकी रही लाज-शर्म से
आदमी और भूत का लेबल हमने
आपस में एक्सचेंज नहीं किया है।
इसलिए अब तुम लोग शांति से रहो
क़त्ल,आगज़नी,बलात्कार सब हमपे छोड़ो।
मैंने अपने  गुरु की चरण-धूलि ली
एक महान सभ्यता,आदम सभ्यता का
वो छोटा ही सही,चलता पुर्जा था
उसका आशीर्वाद,खाकसार के लिए जरूरी था।
मैंने उसका बहुत अहसान जताया
और शब्दों से भी व्यक्त किया
इसपर गर्व से वो मेरी पीठ ठोकते बोला
चलो अब मुझे भी पूरा यकीं हो गया है
कि तुम मर कर भूत बन गए हो।
वर्ना आदमी का जरा भी अंश रहता
तो तुम्हे फिर कहाँ भी एक रत्ती
अहसान और धन्यवाद देना याद रहता।

Sunday, 29 June 2014

प्रेम अनोखा


जाने तूने मुझमें क्या देखा है

जाने मैंने तुझमें क्या पाया है।
                                                        
प्रेम अनोखा यह समझ न आता
सो मौन ही रहना अब बेहतर है।

देह से देह का नहीं आकर्षण
मन से मन का तार जुड़ा है।

तभी तो कहता,ओ सुन साथी
अपने संबंधों का आकाश खुला है।

जब तू ही मैं और मैं ही तू हूं
फिर तुझमें,मुझमें भेद कहाँ है।

अब जब यह समझ में आया
व्यर्थ रहा अब कोई परिचय है। 

Saturday, 28 June 2014

एक सवाल

अंततः मैं तुमसे
एक ही सवाल पुछूंगा
कि ये क्या हो रहा है ?
क्यों मेरे दिल-दिमाग
निकाल कर तुम लोग
लगा देना चाहते हो
नया दिल-नया दिमाग
जो सोचना नहीं जानता
जो समझाना नहीं चाहता।
जिसका एक लक्ष्य है
पैसा सिर्फ पैसा।                                              
आखिर क्यों जरूरी है
चीड़फाड़,प्रयोग
मेरे अपने शरीर पर।
तुमको अधिकार क्या है?
मेरी पटरी को चुपचाप
दूसरी पटरी से मिला देने का।
जिससे मैं पहुँच जाऊं
उस अनजान मंजिल पर
जिसका मुझे कुछ पता नहीं
जवाब दो-
मूक क्यों बने हो
मुझे जवाब चाहिए।
जब तुम मेरे दिल की
धड़कनों की बेल को
और उस पर गिरते
मस्तिष्क के झरने को
मिलाने में सहायक नहीं
तो फिर तुम्हारे हाथ से
यह कुल्हाड़ी भी क्यों न
दस हाथ दूर रहे। 

Friday, 27 June 2014

गॉव

आग निकलती है शहरों से
चलो चलें अब गॉव में
लेकिन पगले रहे कहाँ अब                                  
गॉव हमारे भारत में।

गॉव हैं अब जल रहे
शहरों के दावानल में
आँखें फिर रहें खुली कैसे
धुआं उड़ाती व्यस्तता में।

उस पर यूं हीअगर रहे
हालात आने वाले सालों में
जलते-भुनते रह जायेंगे
हम अपने ही भारत में।





तो आओ अमृत-स्नेह बरसायें
बचे-कराहते, अपने इन गॉवों में
पीढ़ियां देख सकें यहाँ जिससे
छवि प्राचीन-सभ्यता की भारत में। 

Thursday, 26 June 2014

चार लाइना -2

साम्यता 

उनका चेहरा गुलाबी                                                  
खिलता गुलाब
तन-मन तभी शायद कटीला
करता सबको लहलुहान।




सम्बन्ध 

सम्बन्ध पौधों से                                                                                
विश्वास की धूप
सरलता की खाद
स्नेह के जल से
खूब फलते-फूलते।



मनीप्लांट 

मैंने चिंता जताई
मनीप्लांट हमारे घर में                                                                              
हरा-भरा नहीं होता।
उनका दिव्य-उवाच
मनी  का प्लांट है
मनी  के संस्कार पाया है।
आप किसी के घर से
चुरा के तो लगाएं
 फिर मेरा दावा है
ये आपकी नाभि से भी उगेगा।




मियां - मिट्ठू

वे अपने आलाप का
 इतना आलाप करते                                                                        
की लोग उसे उनका
प्रलाप बता देते।







विवशता 

मुद्रा की अभिलाषा में
उलटी -सीधी ,जाने कितनी
मुद्रा है हम रोज बनाते।                                                                            







भारत भाग्य विधाता 

भारत में अगर रहो तो
भाग्य भरोसे रहना
"भारत भाग्य विधाता " दरअसल
अपना राष्ट्रगान भी कहता। 

Wednesday, 25 June 2014

यदि कृपा तुम्हारी हो जाती





यदि कृपा तुम्हारी हो जाती
तो रूप माधुरी दिख जाती
मैं भी कुछ छन निहारती
अपलक,बेसुध  बाँवरी
वर्ना तो भाव शुष्क मन नदी
कर्म,ज्ञान,भक्ति शून्य बहती
भोग, विलास पत्थरों से लटपटी
माया-भॅवर मे उलझ गयी
अब तो नाथ बचाओ लाज मेरी
मैं  मूढ़ सी कब तक फिरुँ अकेली
बहुत हुआ नाथ,बहुत हुआ
शीघ्र सुन लो अब पुकार मेरी
वर्ना जीवित से मैं मरी भली।

Tuesday, 24 June 2014

ग़ज़ल- 42 कभी हां में ना तो कभी





कभी हाँ में ना तो कभी ना में हाँ छुपा होता है। इश्के फ़लसफा हकीकत में तो निष्काम होता है।।

यूं तो कनखियों से निहारा करते हैं वो हमें अक्सर।
कहते हैं मगर प्यार किस परिंदे का नाम होता है।।

तंग नज़रों से प्यार को बाँचने वाले नादान लोगों।
सच्चे प्यार का हरेक हरफ़* खुदा का ईनाम होता है।।*शब्द

वो आएं या ना आएं,घर पर कभी मेरे रूबरू।
हर हाल नज़र मेरी,अक्स उनका आम होता है।।

यूं पाकीजगी से खिलता है प्यार का हरेक  रिश्ता।
रूहानी प्यार तो "उस्ताद" जुदा पैगाम होता है।।

पहाड़ी व्यंग -३

  1
मँहगाई कतु बढन लॉग रै
योई छू हर खापन बात                                
ठुल -ठुल दुकानन में मगर
भीड़ देखचा ,जसी फ्री बटडो माल।


2
आलू गुटुक -भांगे चटनी
को जुगे हेगे बात                                                          
मैगी,पिज़्ज़ा,बर्गर अघिल
को पुछड़ो भड्डू दाल।

3
कुर्त-धोती सब गाड़ बग गो
बरमूडा में मेष छन मस्त
चेलिनेक शेड़ी हाल के कुछा
लाजवाल खुदे करंडी आखन के बंद।
                                                                                               

4
फैशन नई आफत हैगो महाराज
नई -नई लोण्ड -मोण्डनेक तो उम्र भई
पर बुड -बुडी और काखा नानतिन
ब्रांडेड तली नी सुनड़ लाग रई एक बात।








5
उसी भल -भल रसोई तोड़ -ताड़ी                                                      
मॉडलर किचन बड़ुड़ी चेल -बेटी
खांड बडुडे जब बात हुडे
पिज़्ज़ावाल थे करुड़ी डिलीवरी।







6
पहाड़ा चेलेनिक नी समझिया कम
उसी तो बलाड़ में कुणी भैय्या -भैय्या
पर हाथ थाम बेर कभकते ले
बड़े सकनी तुमनके सैय्याँ।
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Sunday, 22 June 2014

राम तुमने





















राम तुमने द्रवित हो मुझको
दे तो दी हैं चरण-पादुका
पर मैं तो नहीं योग्य भरत सा
मुझे कहाँ आता है,सार संभाल करना।
योग्यता भी है,किंचित मात्र नहीं
पर दिया है दायित्व तो आकर
पूरा निभा दो अब साथ मेरा।
काम टेढ़ा है ये तो बहुत मगर
पर मैं जानता हूँ यदि आ जाए
तू सुधारने में यदिमुझे अगर
तो हो ही जाऊँगा कभी न कभी
निर्मल मति  "नलिन" अवश्य। 

Saturday, 21 June 2014

तू बांसुरी जरा 






तू बांसुरी जरा, आज बजा तो साँवरे
बांस की नहीं, ये शुष्क दिल की मेरे।

राधा की छोड़ भी,अब नाराजगी साँवरे
अधूरे हैं मेरे भी, कई सपने -सलोने।

मीरा की तान तो उम्र भर सुनी साँवरे
हलाहल  पिए देख, मैंने भी कितने।

शरारत सताने की अब छोड़ साँवरे
प्यार के बोल को तरसता हूँ तेरे।

बहुत किस्से सुने हैं हर महफिल में तेरे
एक  हिस्सा मुझे भी तू उसका बना ले।

रास-रंग तो गोपियों से खूब करता फिरे
कभी इधर तू मुझसे भी नजरें मिला ले। 

Friday, 20 June 2014

गज़ल -43 बेवफा प्यार के नाम

 
लकीरों में उसको चाहना लिखा जरूर था।
बेवफ़ा मगर अपनी फितरत से मजबूर था।।

जिसकी आवाज़ पर  दिल था मेरा मचलता। 
हमराज जाने क्यों वो बना नासूर था।।

हालात के खंजरों से दिल ये जख्मी हो गया।
भला इल्जाम क्यों थोपें जब अपना कसूर था।।

एक मुद्दत से बिछुड़ उसका ही दिल लापता था।
मगरूरियत के मगर नशे में वो तो चूर था।।

भटक जाता जज्बात के दर्दीले सफर में वो।
गनीमत पुरसाहाल को "उस्ताद"-ए-नूर था।।





Wednesday, 18 June 2014

साईं वो समय कब आयेगा









साईं वो समय कब आयेगा
जब माया का डर मिट जायेगा
चारों तरफ बसअपना ही नूर
मुझको तू दिखलायेगा।
मन हो जाएगा निर्मल
हृदय "नलिन" मुसकायेगा
ये जीवन जो कठिन बड़ा है
सहज सरल हो जायेगा।
नाम को लेते तेरे हर छन तेरे
बुरा वक्त कट जाएगा।
जब कभी बुलाऊंगा मैं तुझको
तू दौड़ा -दौड़ा आ जायेगा।
काम करेगा खुद तू सारे
नाम मुझे दिलायेगा।


Monday, 16 June 2014

बजरंगी तेरी कृपा

                                                                                


बजरंगी तेरी कृपा की खातिर                  
लगा रहा हूँ मैं एक अर्जी। 
सुन लेगा तो ठीक ही होगा 
वैसे आगे तेरी मर्ज़ी। 
मैं तो जीव हूँ,बड़ा पातकी 
कर दे पर ये इच्छा पूरी। 
परम-तत्व से प्रीत लगा दे
 दे-दे सिय-राम की भक्ति।
यूं तो मांग कठिन है जानूँ 
पर करनी तो होगी पूरी। 
और न कुछ मुझे लुभाये 
बाल-मति नहीं वश में मेरी। 
सो बार-बार चरणों में तेरे 
गिरकर करता,यही मैं विनती। 
पूरी कर दे,जैसे-तैसे 
वर्ना होगी,तुझसे कुट्टी।  

चार लाइना







साधना 
वो ही है सच्ची साधना
जिसमें रहती कोई साध +ना








संत
अपनी कामनाओं को उसने
जलाकर राख कर दिया।
उसी भस्म को बाँट फिर
जगत का कल्याण कर दिया।



होशियार 
वह युवक चिढ़कर बोला
तो क्या मैं गधा हूँ ?
वृद्ध बोले, नहीं-नहीं
तुम तो बड़े हो+सियार।



प्रेमी युगल  
धीरे-धीरे वे दोनों
दूरियाँ पाटकर
नज़दीक आ गये।
पहले तुम से तू
फिर तू-तड़ाके पे आ गए।





विद्यार्थी 
आजकल विद्या के अर्थी
निकालते विद्या की अर्थी।




ईद 
चाँद को देखने की क्या जरूरत
ईद तो मनेगी हर उस रोज़ को
दो जून की रोटी मिलेगी भर पेट
जब हर एक मज़लूम, मुफ़लिस को।





नलिन (कमल )
जन्मा माया के पंक में
खिला कामना के पंक में
पर न सना, रहा निर्लिप्त
सदा ही पंक में।

ग़ज़ल -41




















ये जाने कैसी अज़ब दिल्लगी अपनी है।
बेवफ़ा के आने की उम्मीद अपनी है।।

बस मान जाए वो किसी भी तरह हमसे।
रब से अब तो बस मन्नत ये अपनी है।।

अगर आए तो जतायेगा वो अहसान अपना।
क्या करें सुनना मज़बूरी आंखिर अपनी है।।

वो नरम मुलायम से पाक-दस्त हुजूर के।
चूम आँखों लगाते किस्मत ये अपनी है।।

रास्ता जो भटक जाए कहीं भी कोई शागिर्द अगर।
मिल जायेगी मंजिल उसे नज़रे "उस्ताद" अपनी है।। 

Friday, 13 June 2014

पहाड़ी रचनायें

1)   अपूण फिगर बड़ुुड में
       चेलिनोक के कूँ में हाल
       खांड-पेिड सुब छोड़ हालो
         टैटू बडून में छू ध्यान।

2)   मेश आ मेश दिखाडी
       याँ बटी वां,वां बटी यां
       तू मके खाले मैं तुके खूळ
       यश छन हालात।

3) चोर-पुलिश,नेता-अफसर
    सब एक जश लूटनि आम
    पत्रकार,वकील और सूम छन
    यनन थे ले खाड़ी माल।

4) मोबाइल चैटिंग करड़ में                              
    छोर-छोरी  छन फरफरान
    ईज -बाबू बात मानड़  में
    करड़ी सब नौराट।

5) काम करड़ा नाम पर                                                    
     सड़ी भेल हलके नी सकनी
    माथ-माथे मलाई खाड़ में
     है गयी सब उस्ताद।

6)झाड़ू मार हाल्यो खुद अपुड खोरि
कुड़ -करकट है गयीं "आप"
कुछा के कुछा यनर हाल
केजरी तेरी टेढ़ हेगे चाल।

7)पैली कीचड़ खुदे फतोड़
"हाथ "अब करड़ो  डड़ा -डाड़
कीचड़ में कमल नी उगोल
तो पे उगोल कै  झाड़। 

Thursday, 12 June 2014

मिलजुल हम खेलें



खेल-खेल में,हम सब मिलकर
आओ गगन को छू ले मिलकर।

हम हारें या तुम हो हारते
खेल सदा ही रहे जीतते।

तुम बढ़ जाओ हमसे आगे
या हम बढ़ जाएँ तुमसे आगे।

उठे रहे फक्र से शीश हमारा
विश्वबंधुत्व हो "गोल "हमारा।

गले लगा कर ,एक दूजे को
आओ मिल कर, खेलें खेल को।









Wednesday, 11 June 2014

ग़ज़ल -20





























दुनिया जानें नफरतों से भर रहे भला क्यों?
जानबूझ कर देखो खुद को रहे बहला क्यों?

महक उठा है तेरे नक़्शे-पा से ज़र्रा-ज़र्रा।
मेरी चौखट से बस गुरेज़ तुझको भला क्यों?

कली जो भीग गई पहली-पहली बरसात में ही। 
पत्ते कहते चमन हमसे करता घपला क्यों ?

हौंसले से हथेली जब उगा लेते हैं लोग सरसों।
कदम दर कदम जोश भरा बढ़ने से हिचक बतला क्यों ?

बाँहों में सिमट कर आज बरस जाओ मेरी। 
मौसम है सुहाना फिर दिल नहीं पिघला क्यों ?

मुसाफिर हो जिंदगी की राह में "उस्ताद" तुम तो।
कस्तूरी भीतर फिर उदासी का मसला क्यों ?

Tuesday, 10 June 2014

ग़ज़ल -38 ददॆ पीते हुए

















ददॆ पीते हुए तो हमें यारों जमाने हुए।
गजल लिखने के जो सभी बढके बहाने हुए।। 

चलो बात उनसे कुछ हो तो सकी आंखिर।
वरना तो मिले उनसे हमें जमाने हुए।।

मर-मर के भी जीता है यूँ तो आम आदमी।
बात तो है मगर क्यों ये भला पैमाने हुए।

रदीफ़,काफ़िये की नहीं पहचान जरा मुझे तो।
बहाने से ग़ज़ल के जख्म कहीं तो दिखाने हुए।।

पढ़नी तो होगी ही रूखी ग़ज़ल "उस्ताद" मेरी।
मंझधार में साहिल जिन्हें जब कभी तलाशने हुए।।

Monday, 9 June 2014

ग़ज़ल-37 आंखों आंखों में

















आँखों-आँखों में इशारे हुए और बात हो गयी।
लो अब जिन्दगी भी हमारी एक बारात हो गयी।।

झूला झूलने की हसरत उसके मन ही रह गयी।
नादाँ कली तो हैवानियत की घात हो गयी।।

मादरे-जुबां जबसे अपनी परायी हो गयी।
आँखों से कोसो दूर शर्मो-हया बात हो गयी।।

आग, पानी, हवा, गगन,मिटटी को बहुत लूटा।
कायनात तभी तो रूठ कर उत्पात हो गयी।।

चाँद, सितारों की बारात लो नील गगन चढ़ गयी।
आशिकों की बजी बांसुरी आज विख्यात हो गयी।।

रेशमी ख़्वाबों का काजल इंद्रधनुषी  लगा कर।
याद उनकी"उस्ताद"हमको आज सौगात हो गयी।। 

Sunday, 8 June 2014

ग़ज़ल -40 मेरी चाहत में














मेरी चाहत में रही होगी तीव्रता नहीं।
वरना कहो तो कहाँ वो है भला बसता नहीं।। 

उसके दीदार को तरसता है मन मेरा। 
मौजूद हर जगह मगर वो है मिलता नहीं।। 

कायनात की खातिर उठाता हूं हाथ मगर ।
दुआओं में असर मेरी कुछ तो दिखता नहीं।। 

थक गया हूँ पुकार-पुकार के नाम उसका। 
जुबां शायद मेरी दिल कभी धड़कता नहीं।।

जाने कैसी दुनिया में रहते हो "उस्ताद" तुम।
चलन जमाने का तुझमें दिखाई पड़ता नहीं। 

Saturday, 7 June 2014

ग़ज़ल 21






















आईने का इतना भी ना हुजूर आसरा कीजिए।
इनायत कर कभी हमारी ओर भी चेहरा कीजिए।।

हर तरफ बिखरा है बस एक उसका ही नूर।
आँखों को मगर बंद ना आप करा कीजिए।। 

नफ़रत,जंग,आतंक मेरी तौबा-तौबा। 
हुजूर खुदा का कुछ तो खौफ जरा कीजिए।। 

खुदा की बंदगी करने वालों जरा तो खौफ खाओ।
गैर की नहीं तबीयत* पर अपने गौर गहरा कीजिए।
*आचरण

माना भक्तों की फेहरिस्त लम्बी है तेरी।
फिर भला हमसे ही क्यों आप पैंतरा कीजिए।।

मुहब्बत, एतबार जरूरत है आज की बेहिसाब।
"उस्ताद"इस पर अमले-नजर सदा ही खरा कीजिए।। 

ग़ज़ल 26



मेरी फितरत कोई हंसी-खेल नहीं ये समझना होगा।
जीने के लिए मुझमें डूब के तुझे खुद को मिटना होगा।। 

जिंदगी के रंजोगम हर सुबह-शाम निभाते हुए।
खुद के आईने ही में खुद को संवारना होगा।। 

दोस्त,दुश्मन के खाँचों से अलग हटकर। 
अब खुद का एक चेहरा तलाशना होगा।। 

बाँहों में समा हमनशीं बनाने से भला क्या होगा। 
बटोरने को मोती तुझे समंदर तो नापना होगा।।
 
माना हम तेरे प्यार के लायक नहीं बने।
किसी से दिल लगा मगर तुझे तो रहना होगा।।

रोशनी दिखेगी कहाँ ऐसे तुझे परवरदिगार की। 
ऑखों में खुद को"उस्ताद" हर वक्त सहेजना होगा।।  

Thursday, 5 June 2014

श्री साईं स्त्रोत








श्री गणेश प्रथम पूज्य तुम, कृपा करो विशेष।
श्री साईं चरित कहूँ जो हरे पाप भय क्लेश।।



जय श्री साईं जय भगवंता,तुम हो साक्षात गुरु रूपा। 
अद्भुत गूढ़ रूप त्तुम्हारा,जानूँ कहाँ बिन कृपा प्रसादा।
सो अब करो साधन कुछ ऐसा,गर्व करूँ बन जौऊं चेला। 
जगत प्रपंच घेरे बहु भांति,मैं तू हूँ फिर और अनाड़ी। 
बार-बार उकसाए मोहे माया,छल,कपटी,दम्भी यह काया। 
धरम -करम सब ही छुट जाते,आलस-मत्सर प्रीत बढ़ाते। 
काम-क्रोध,मद अवगुण नाना,भीतर-भीतर सेंध लगाते।  
तू अब करो विलम्ब न देवा,बन जाओ अवलम्बन मेरा। 
मैं तुमको तुम मुझको देखो,भाव रहे फिर कौन अधूरो। 
श्री चरनन प्रीति लग जाये,जीवन सफल मेरो होइ जाये।
तुम तो प्रभु जगत के स्वामी,व्यथा हरो अब अन्तर्यामी। 
कोटि-कोटि रवि तेज तुम्हारा,ह्रदय मृदुल "नलिन"सा प्यारा। 
मैं क्यों रह जाऊँ अकेला,हाथ पकड़ लो अब तुम मेरा। 


श्री साईं सद्गुरु तुम,खोलो ज्ञान द्वार।
 राह कठिन भवसागर की उतरे बेडा  पार।।

वेष फ़कीर साईं तेरा,मुझे मन भाया। 
अलख रमाई "शिर्डी"में,वेष बदल कर आया।।
तेरो रूप तू ही भेद जाने,मुझे प्रीत रस दे दे। 
नाटक करे भिक्षुक के जैसे झोली मेरी भर दे।।

अवतारों में अवतार श्रेष्ठ, तू तो है एक साईं।
विमल बनाने आया मुझको फिर विलम्ब क्यों साईं।।
चिलम में जलें अवगुण सारे,कश ऐसे तू ले ले।
"उदी"काया-कल्प करे मेरा,सब विकार तू हर ले ।।