Friday, 20 October 2023

सीताराम

श्रीराम,जानकी को हृदयासन में आप अपने विराजिये। 
हो यदि हृदय मलिन,क्लांत,कलुषित तो भी न घबराए।। 
सहज,सरल भाव से बस उनको सतत पुकारते रहिए।
त्वरित ही आएंगे सीता-रामजी विश्वास आप मानिए।।
यदि अब वो आ ही गए तो कौन दूषण रहेगा बताइए।आप होंगे निर्दोष,निर्मल निश्चित सत्यवचन ये जानिए।।
सृष्टिकर्ता परम प्रभु एकमात्र सीताराम हैं जब विचारिए।  निष्कलंक पूर्णिमा के चंद्र सदृश आप तो बस मुस्काइए।। 
उदार विरुदावली उनकी प्रतिश्वांस दृढ होकर उचारिए।
श्रीचरण युगल सरकार देंगे स्थान अवश्य धैर्य ये धारिए।।

नलिनतारकेश

Thursday, 19 October 2023

श्री बांके बिहारी लीला

ॐ ○□बांके बिहारी लीला□○ॐ
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अधरों से श्याम के लगी बाँसुरी राधा ने आज छीन ली।  लगा अपने होठों से फिर उसमें राग अनूठे बजाने लगी।हतप्रभ कृष्ण कुछ क्षण तो समझ ही ना पाए ये पहेली।
मगर प्रभु तो ठहरे नटवरलाल बचपन से महा के छली।
सो तुरंत उन्होंने रूपांतरित कर छवि राधा की बना ली।
और बन गए वो तो राधा रूप धारण करके प्राकृत स्त्री।
सो अब थी हमारी राधारानी के विस्मित होने की बारी।
मगर कहाँ वो हार मानती कृष्ण की प्रियाजी जो ठहरी। झटपट अतः वो भी बन गईं अपने कृष्ण की प्रतिमूर्ति। 
अब निहार दोनों ही एक दूजे की मस्ती भरी ठिठोली। हंसते-खिलखिलाते आलिंगन में देह परस्पर भर ली।
ये देख हाथों से फिसल स्वर-मृदुल बजाने लगी बांसुरी।
सृष्टि भी पोर-पोर खुलकर संगत अप्रतिम देने लगी।
देख अलबेली ऐसी झांकी रोम रोम खिली नलिन कली। राधा कृष्ण के मध्य सत्य में कहां तनिक भी है भेद दृष्टि।
एक प्राण ने तभी हरिदासजी दिखाई छवि बांके बिहारी।।

नलिनतारकेश

Saturday, 14 October 2023

608: ग़ज़ल: #श्रद्धा-सुमन #पित्र पक्ष

#पित्र पक्ष #श्रद्धा-सुमन 

पुरखों को अपने ख़िराज-ए-अक़ीदत* पेश करना।*श्रद्धा-सुमन 
एहसान नहीं वजूद खुद का ही है संभल रखना।।

कहाँ तक रहा कुदरत के सफर में हिस्सा हमारा। 
ये सब देता है ब्यौरा खोल के अपना बहीखाता।।

बूंद से बूंद जुड़कर जैसे एक दरिया की रवानी बनी। कायनात में यूँ चल रहा आदमज़ाद का सिलसिला।।

फुरकत* में दिलदार के ताअकुब** से मुतमईन*** हो गया हूँ। 
*जुदाई    **पता चलाना   ***संतुष्ट 

कहीं गुम न हो बस बनके बादल वो कहीं और बरस जाता।।

यूँ देखो तो कोई किसी का नहीं वरना हैं सब एक ही। "उस्ताद" तिलिस्मी यही है खेल बड़ा परवरदिगार का।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 13 October 2023

607: ग़ज़ल: ये भी चाहिए

ये तो चाहिए ही हमें और वो भी चाहिए।
इस दुनिया के रंग सभी सतरंगी चाहिए।।

तलब बाकी ना रह जाए कोई भी अपनी।
खुद से दुआ तो सबको बस यही चाहिए।।

वजूद अपना बरकरार रहे कयामत तक।
हर हाल में यही नुस्खा ए जिंदगी चाहिए।।

कवायद खुदा कसम बस है इसलिए सारी।
झोली हमें अपनी ही सबसे भारी चाहिए।।

खुशी की तलाश में कब से कबाड़ बटोर रहे।
"उस्ताद" समझ इतनी हमें तो होनी चाहिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 12 October 2023

606:ग़ज़ल: छलावा देकर

बहुत कहा मैंने अब तुम भी तो कुछ कहो।
जो कुछ है दिल में बेहिचक उसे बहने दो।।

हलक में फंसकर जिगर को जो चीर रहा है।
होता है गुबार हल्का साफ़गोई से जान लो।।

एक-एक कदम रखकर ही आगे फासले मिटते हैं। 
शुरू में कांपते जरूर हैं पर फिक्र तुम ये  छोड़ दो।।
 
तकदीर तो संवरती है बस तदबीर को गले लगाने से।
सौ फीसदी बात है सच्ची मान जाओ इस तकरीर को।।

छलावा देकर बुला तो लेता है हर बार अपनी अंजुमन में।
गली में "उस्ताद" अपनी भटकायेगा कब तलक बता तो।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 11 October 2023

605: ग़ज़ल: खुदा का नाम

लो आज का दिन भी अपना ज़ाया हो गया।
जुबां को नाम लेना खुदा का तौबा हो गया।।

उम्र बढ़ रही जैसे-जैसे सांसे घटने लगी हैं।
कर्जा ए जिंदगी इस कदर ज्यादा हो गया।।

वो आए नहीं हों चाहे अन्जुमन में अब तलक। 
खबर सुनकर दिल खुशगवार अपना हो गया।।

चाय की प्याली तूफान है आ गया लगता कोई।
वर्ना क्या बात हुई जो आज वो बेवफ़ा हो गया।।

अपने दिलदार से जाने किस मोड़ मुलाकात हो।
जिस्म में "उस्ताद" तभी स़जायाफ़्ता हो गया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Tuesday, 10 October 2023

604: ग़ज़ल: खुदा बचाए

लिखता रहा हूँ गजल बस इसलिए।
घाव नासूर न बन जाए रिसते हुए।।

देख जमाने भर के रंजोगम आसपास ।
दिल ए चैन कहाँ भले लाख संभालिए।।

ऐन मौके पर भूलते हो केवल हमें।
अब कहो कैसे तुझे अपना बताएं।।

सच-सच कहें तो आफत चुप रहे तो भी।
भला ऐसे हालत साथ तेरा कैसे  निभाएं।।

जुबान से कहो कुछ और दिल में कुछ रखो।
"उस्ताद" ख़ामख़याली* से तेरी खुदा बचाए।।*फ़र्ज़ी सोच

नलिनतारकेश @उस्ताद

 

Monday, 9 October 2023

603: ग़ज़ल: सब नाचते प्यालों से

जो चाहते नहीं कभी हम औरों से।
अक्सर करते वही हम अपनों से।। 

जो कुछ मिलता नहीं हकीकत में।
बहलाए है दिल उसको ख्वाबों से।।

फासला जो बढ़ गया है हमारे दरमियाँ।
आओ चलो सुलझा लें बैठकर बातों से।।

होगी कभी सर्दी तो कभी धूप मौसम में।
सफर तो करना होगा गुजर कर राहों से।।

किससे रखें उम्मीद और किससे नाउम्मीदी।
वक्त के हाथ सब नाचते "उस्ताद" प्यादों से।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 7 October 2023

602: ग़ज़ल: बेसुधी का ऐसा आलम

बेसुधी का ऐसा आलम कि क्या कहें।
तेरी चाहत का है ये नतीजा क्या करें।।

हवाओं से आ रही है तेरे दीदार की खुशबू।
मसला है ये आंखिर सांसों में कितना भरें।।

होंठ बुदबुदाते हैं तो कभी धड़कन में बजता है।
नाम का जादू तेरे भला किस-किससे हम कहें।।

आंखों में तैरती है अब हसीन सूरत तेरी।
कब तलक बंद पलकों में राज ये छुपाएं।।

"उस्ताद" सच कहें तो अब तेरी जरूरत नहीं।
हमसे ज्यादा तो अब हम आपको बेचैन पाएं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 6 October 2023

601: ग़ज़ल: दिल बहलाने को

किताबें रिसाले पढ़ीं तो बहुत मगर याद कहां।
एक लफ्ज़ दिल को मगर याद बस प्यार रहा।।

रात-दिन जिसके ख्यालों में गुजारी हमने यारब।
उसने भी मगर कहाँ जिंदगी में जरा साथ दिया।।

उम्मीद ए लौ टिमटिमाती तो है कहीं दूर फलक में। 
चलो-चल कर देखें क्या है तकदीर में अपनी बदा।।

दुनियावी असबाब में इस कदर मशगूल रहे हम।
तराना ए रूह जो था सुकूं का वो अनसुना किया।।

जिंदगी की जुल्फों के सुलझेंगे न तुमसे पेंचोखम।
दिल मगर बहलाने को "उस्ताद" है कुछ नहीं बुरा।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 5 October 2023

600:ग़ज़ल: इतनी कही,इतनी लिखी

ग़ज़ल संख्या 600
==××=++=÷÷==

इतनी कहीं,इतनी लिखीं कि खुद ही ग़ज़ल हो गया। जिंदगी की पढ़ी शिद्दत से तुज़ुक* तो निर्मल हो गया।।*आत्मकथा

प्रीत की डोर बंधी पेंगे इतनी इस कदर उठीं दिल में।
अपने दिलदार की आंख का वो तो काजल हो गया।।

जमाने ने बेतकल्लुफ दिले-किताब खोल दिखा दी। 
सहज हो उनके लिए जब वो महज रहल* हो गया।।
*किताब रखने की चौकी

सावन का मौसम अंगड़ाई ले दहलीज से जो गुजरा। बेकरार मन उसका बेसाख्ता तब्दील बादल हो गया।।

इनायतें उसकी मुझ पर हर सांस इतनी अनोखी रहीं।
सजदे को झुका "उस्ताद" तो नमाजे फजल हो गया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 4 October 2023

599: ग़ज़ल: तन्हा है आदमी

भीड़ में रहते हुए भी कितना तन्हा है आदमी। 
दरिया के पास भी कितना प्यासा है आदमी।।

उम्मीदों के सहारे तो जिंदा रहता है आदमी। 
उनके चलते ही मगर रोज मरता है आदमी।।

निगाहें चार सांवले सलोने से हो गईं जबसे। 
उसी पल से चकोर सा बन गया है आदमी।।

तेरे-मेरे का फासला है तो नहीं पर मिटता भी नहीं। 
दरअसल जिस्म से ऊपर उठ नहीं पाया है आदमी।।

दरियादिली में उसकी कमी "उस्ताद" कभी भी नहीं।
जाननिसारी पर मगर फिर भी डरता रहा है आदमी।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Tuesday, 3 October 2023

598: ग़ज़ल: भूकंप

मेरी दुआ-सलाम से भी अब वो कतरा रहा।
कतरा-कतरा इस तरह वो मुझे तरसा रहा।।

यूँ तो वायदे किए थे साथ निभाने के उसने मुझसे।
जाने किस बात पर बहाने बना अब है बहला रहा।।

वक्त भी गजब मौज लेता है जब तारे गर्दिश में हों।
जख्म पुराना तो भरा नहीं नया जरूर मिलता रहा।।

सुकून की तलाश में भटकते हो खानाबदोश से क्यों।
देखते ही नहीं झांक कर तहे-दिल वो जो बसता रहा।।

भूकंप के झटके तो आएंगे,पर बाज न आते नामाकूलों।
आंखिर कब से तेरे गुनाहों को हर दिन वो दिखला रहा।।

हवाओं का रुख था जिधर,उधर कश्ती कभी हांकी नहीं। अनजानी मंजिल फिर भी"उस्ताद"इबारतें नई गढ़ता रहा।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday, 2 October 2023

597: ग़ज़ल: सुर लय ताल में गाइए

सा रे;ग म को जरा एक सुर,लय,ताल में गाइए।
यूँ आसान खुश रहने का नुस्खा मुफ्त पाइए।।

जैसी भी मिली है नसीब से जिंदगी आपको। 
मन लगा,सिटी बजाते बस इसे गुनगुनाइए।।

फूल ही मिलें,रास्तों में बिछे ये मुमकिन नहीं।
जरा कांटों में भी बढ़ने का हौंसला दिखाइए।।

सूरज,चांद,सितारे हर गाम हैं दौड़ते-भागते रहते। 
जीवन की बाजी फिर आप क्यों थक-हार जाइए।।

मदद करता है खुदा भी उसी की जो खुद चप्पू चलाए। 
वरना तो तय है दरिया ए जिंदगी "उस्ताद" डूब जाइए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद