Friday, 30 June 2023

545: ग़ज़ल: मौज और है

पहली फुहार में भीगने की मौज और है।
प्यार में खुद को भुलाने की मौज और है।।

कागजी जिस्म है नहीं तो डर क्यों रहे हुजूर।
बूंदो की मोतियों से सजने की मौज और है।।

घने काले बादल जब लहराते हैं गेसूओं के।
खुद को महफूज न रखने की मौज और है।।

वो तो आए ही नहीं वायदा कर मिलने कभी।
धोखों पर हर बार एतबार की मौज और है।।

सावन का मौसम अलहदा है "उस्ताद" कसम से।
गली-कूचों के झरोखों पर फिसलने की मौज और है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 28 June 2023

अल्पना सजाएं

सितार के आज तार छेड़ें,मृदुल हाथों से चलो अपने।
नवल वसन्त राग गाएं,अप्रतिम प्रेम के हम पाग सने।।

इंद्रधनुषी सृष्टि में आओ कुछ चटक रंग भरकर दिखाएं। चंपा,चमेली,गुलाब,पुष्प-पराग से दसों दिशा महका दें।।

हरी भरी वसुंधरा में,मृगशावकों से हम उछलते-कूदते।कजरारे नैनों की बुझा विपुल व्यास,आ उसे तृप्त करें।।

सूरज,चांद,सितारे चमचमाते,गगन से लाकर उतार नीचे।
खेलें मिलकर हम सब साथ,इन्हें अपनी कन्दुक बना के।।कन्दुक : गेंद

शांति-सद्भाव,आशा-विश्वास के गीत पुरजोर गुनगुनाते।
घर-घर प्रत्येक चौखट जाकर,सात्विक अल्पना सजाएं।।

नलिनतारकेश

Tuesday, 27 June 2023

राम राम मेरी डोर तेरे हाथ

याचकों की पंक्ति में खड़े हुए,हम तो अंतिम छोर हैं। 
होगी कृपा हम पर राम की,बस तलाशते वो भोर हैं।।

राम ही जो हों आराध्य,फिर कहाँ जगत रहे कोई वाम है।
यूँ काम,क्रोधादि न जाने कितने,उर निवास करते चोर हैं।। 

निर्गुण,निराकार रूप जिनका,जग में दिखता प्रभाव है।
वो भक्तवत्सल,बस एक आर्त पुकार,झांकते हर पोर हैं।। 

शरणागति ले लें यदि,भाव से एक बार भी,यदि उनकी।
बन चट्टान अडिग,हर संताप में,वो खड़े हमारी ओर हैं।। 

आनंद,परमानंद में सदा ही हम,नलिन से खिलखिलायेंगे। देखो यदि खुले मन से,जो सौंप सकें उन्हें,अपनी डोर हैं।।

नलिनतारकेश

Monday, 26 June 2023

544:ग़ज़ल :- छलछलाने लगी

देह चंदन सी बन के महकने लगी।
सांसे जब तेरी मुझको छूने लगीं।।

निगाहों ने दरिया ए हुस्न को देखा तो।
साहिल में खड़े-खड़े ही वो डूबने लगीं।।

माशाल्लाह क्या नूर टपकता है चेहरे से तेरे। 
देख दुनिया ये सारी ख़ैर-म़क्दम* करने लगी।।*स्वागत 

गुलों को शाख से तोड़ने की देखकर साजिश। 
किसी की चाहत अपने भीतर सिसकने लगी।।

थी महज दो बूंद शराब प्याले में बाकी हमारे।
देखा तुझे तो वो भी इतराती छलछलाने लगी।।

लफ्जों की भी तो है कोई इंतहा आंखिर।
कलम "उस्ताद" की लो आज थमने लगी।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 24 June 2023

बाल रूप श्रीराम

वंदनीय बाल रूप श्रीराम का
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अद्भुत अप्रतिम रूप लावण्य,मेरे मनमोहक बाल रूप राम का।
देख नयनाभिराम मंगल छवि,बन गया हूँ मैं चकोर,रामचंद्र का।। 
नील-वर्ण,नीलकांति,दीप्तिमान मुखमण्डल छवि,मन करे चूमने का।
श्वेत मोतियों सी नन्ही दंतपंक्ति,मिटाती अज्ञान अखिल सृष्टि का।।
केश घने काले,उमड़ते-घुमड़ते,बनाकर रूप बादलों का।
करते उपक्रम,उर्वर-हृदय में,भक्ति-फसल,लहलहाने का।।
"नलिन" नयन कृपा कटाक्ष कर,हरते दुःख संताप प्राणियों का।
तारकेश्वर शिव भी अनवरत करते जाप जिनके सुधारस नाम का।।
अधर अमृत में पगे सुर्ख लाल,आभास देते रवि प्रकाश का। 
उन्हीं से लगे जूठन को पा,तृप्त होता उदर,शिरोमणि काग का।।
पवनसुत निरंतर निरख नख-शिख,अपने परम-पूज्य आराध्य का।
संजीवनी लाकर जिलाते लखन सदृश शरणागत भक्त श्रीराम का।।

नलिनतारकेश

Friday, 23 June 2023

#manojmuntashir #adipurush

#manojmuntashir  #Adipurush 

नाचहिं नट मर्कट की नाईं 
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बंदर को सदैव अपनी पूंछ (पूछ) प्रिय अत्यंत लगती है।
दरअसल यही तो उसे बना देती सदैव अतिविशिष्ट है।।
वृक्ष की शाखाओं पर उल्टे लटकने का करतब दिखा।
सहज ही भर पाती जो सबमें उत्तेजना अप्रत्याशित है।।
क्षण में अपनी फनकारी से बजवा भी लेती है तालियाँ।
चरम सुख,संतुष्टि पा मगर दिमागी संतुलन हिला देती है।।
सो उसी रौ में वो नकलची बंदर उस्तरे का इस्तेमाल कर। अपना ही थोबड़ा लहूलुहान कर दशग्रीव सा इतराता है।।  बावजूद इसके वो आत्ममुग्ध हो निहारता है स्वर्ण दर्पण।।डालियाँ पकड़ चैनलों की इधर-उधर कूदता-फांदता है।। पारितोषिक समझ लोगों की कठोर प्रतिक्रिया पर हँसता। जाने-अनजाने प्रमाद में स्वयं की ही पूंछ को जलाता है।। और देर जब उसे होशो हवास आए तब तक नादानी में।
बेचारा वो अभिशप्त अपनी ही बस्ती खाक मिलाता है।।

नलिनतारकेश

Thursday, 22 June 2023

543:- ग़ज़ल: आँखों की कश्ती

हर तरफ हो खुशियों का कारोबार तो कैसा रहे।
बहे हर तरफ बस प्यार का खुमार तो कैसा रहे।।

जुबानी जंग बार-बार करने से कहो क्या फायदा।
मुकाबला चलो हो ही जाए आरपार तो कैसा रहे।।

बहुत उठा चुके नाज ओ नखरे हम तुम्हारे जानेमन।
मोहब्बत का अब कर भी दो इजहार तो कैसा रहे।।

टकराई बेसाख्ता कश्ती आँखों की इश्क की झील में। लफ्जों की चल ही न पाए मगर पतवार तो कैसा रहे।।

इत्र लगा मुगालते में किसी को "उस्ताद" क्या डालना। महक शख्सियत ही अपनी करे इश्तिहार तो कैसा रहे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 21 June 2023

542: ग़ज़ल:-जेब बगैर लिबास

खुशी मिलती है तुम्हें तो यूँ ही हमें रुलाते रहो।
झूठमूठ ही बस तुम कभी आकर बहलाते रहो।। 

धुआं-धुआं सी हो ही गई है जब हमारी ये जिंदगी।
नजदीक हमारे तुम भी आकर बीड़ी सुलगाते रहो।।

जुल्फों की छांव मयस्सर होगी कभी जिंदगी में।
चलो बस यही सोचकर खुद को बरगलाते रहो।।

गम का तो है जिंदगी संग चोली दामन का रिश्ता।
फिर भला क्यों हर घड़ी बेवजह चिड़चिड़ाते रहो।।

हरहाल रहना जो चाहो मस्त फकीरी के रंग में "उस्ताद"।
लिबास अपने,ख्वाहिशों की जेब बगैर ही,सिलवाते रहो।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday, 20 June 2023

ग़ज़ल-541:- लुत्फ और है

मां के आंचल में बैठने का लुत्फ और है। 
जमीं पर बैठकर खाने का लुत्फ और है।।

छप्पन भोग का है यूँ लज्जतदार स्वाद अलहदा।
बैठ पंगत में मगर प्रसाद पाने का लुत्फ और है।।

माना वो भाव बहुत खा रहा इजहार ए मोहब्बत में। 
 धीरे-धीरे सही उसे अपना बनाने का लुत्फ और है।।

सीधी राहों में चल चूमना हर मंजिल आसान है।
जान हथेली लेकर मगर चलने का लुत्फ और है।।

गमों के तूफान में डूबना लाजिम है बड़े जहाजों का।
कश्ती वहीँ "उस्ताद" अपनी खेने का लुत्फ और है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 19 June 2023

540:-ग़ज़ल: करार आ गया

इश्क करना तय मानिए जिसे एकबार आ गया।
इस जगत का उसको समझ में सार आ गया।।

पाक दामन रहा वो तो गुनाह करके भी देखिए।
करना जिसे अपनी गलतियाँ स्वीकार आ गया।।

हर एक बात पर सहमति जताना आपका जरूरी नहीं।
जीत लेता है वो भी दिल जिसे करना इन्कार आ गया।।

अपने लिए तो यहाँ जीते रहे हैं सभी ता-उम्र देखिए। 
सुकूं मिला उसे जिसके जज़्बात में उपकार आ गया।।
 
धन-दौलत,माल-असबाब कुछ दिन की बस चांदनी।
रईस तो है वही जिसे बांटना सबको प्यार आ गया।।

चार बर्तन रहेंगे जहां भी,होगी वहीं कुछ खटरपटर भी। मुखिया वही है जिसे मिलकर,चलाना परिवार आ गया।।

रूठके बैठ जाते हैं अक्सर हम किसी न किसी से कभी। 
जीतता है हारी बाजी वही जिसे करना मनुहार आ गया।। 

"उस्ताद" यूँ तो मेरी निगाहें बस एक बार ही उनसे मिली।
सच कहें जिंदगी में तबसे अपनी असल करार आ गया।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 16 June 2023

ग़ज़ल:- 539 तेरी तरफ

खानाबदोश सा इधर से उधर मैं आ जा रहा हूँ।
जिंदगी का अपनी हुक्का गुड़गुड़ाए जा रहा हूँ।।

जो था हमनवा मेरा वो जब इतने करीब आ गया।
हैरान हूँ यारब भला कैसे नहीं उसे देख पा रहा हूँ।।

वक्त के साथ ऐनक का नंबर तो बदलना तय था ही।
मगर ये कैसी साजिश हुई खुद को ही भुला रहा हूँ।।

जाने क्या बात थी उसके लिए प्यार के पहले अल्फाज में। अब तलक बंजर रेगिस्तान में ख्वाब के चप्पू चला रहा हूँ।

कुछ तो बात नायाब है जरूर तेरी मोहब्बत में "उस्ताद"।
हर लम्हा जो तेरी तरफ खींचता ही चला आ रहा हूँ ।।

नलिनतारकेश@उस्ताद


Thursday, 15 June 2023

15 जून बाबा का कैंची-धाम

बाबा का प्रसाद पाकर भक्त सभी निहाल हो रहे।
दसों दिशा जय हो कैंची-धाम जयकारे हैं गूंज रहे।।
दिन 15 जून विशेष जानकर लाखों भक्त आ रहे।
दिव्य मालपुए के सेवन से आधि-व्याधि मिटा रहे।।
हर कोई एक दूजे को अलौकिक किस्से सुना रहे। 
बाबा कैसे करते हैं सब पर कृपा सबको बता रहे।।
भावपूर्ण जिसने किया निवेदन उसके मिटते कष्ट रहे। बंजर हृदय झील में देखो शतदल-नलिन खिलते रहे।।
एक आस,एक विश्वास लेकर यहाँ जो भी आते रहे। 
बाबा के प्रताप से उनके हर कार्य सहज ही होते रहे।।
जो अकिंचन किसी कारण से यहाँ आने में असमर्थ रहे।
हाथ जोड़,मस्तक नवांकर वो भी प्रसादी घर हैं पा रहे।।

नलिनतारकेश

Wednesday, 14 June 2023

ललिता कला वीथिका@पंकज आर्ट्स #####################सौजन्य से रचित।

ललिता कला वीथिका@पंकज आर्ट्स 
#####################सौजन्य से रचित। 

साहित्य,संगीत,चित्रकला आदि की सात्विक आराधना।
दुष्कर,दुरूह अत्यंत किंतु,यही तो है अनमोल साधना।।
हर घड़ी,हर पल,अविराम पड़ता है,स्वयं को हमें तराशना।
तब कहीं जाकर साकार होती,इसकी सिद्धप्रद स्थापना।।
शिव-डमरू से निर्झर हुई थी जैसे,भावों की अभिव्यंजना।
वैसे ही शारदे वीणा झंकार ने,हमको सिखाया अलापना।। प्रकृति इंद्रधनुषी छटा से हुआ संभव कला का लहलहाना
चेतना में जिसे पाकर जगत उपजी हर दिशा सद्भावना।। 
वस्तुतः प्रश्रय में कला के ही हम धन्य करते जीवन जन्मना।
उर हमारे निर्मल-नलिन प्रस्फुटन की बढ़ती तभी संभावना।।

नलिनतारकेश

Tuesday, 13 June 2023

ग़ज़ल:- 538:रेशमी जुल्फों के साए बगैर

रेशमी जुल्फों के साए बगैर जीना भी सीखना चाहिए।
बनके बंजारा तपते मरुस्थल हर हाल चलना सीखिए।।

जद्दोजहद हर कदम यकीं अपना तोड़ने को बेचैन रहती।
थक-हार,टूटके बैठने से होगी पर हार ये तो तय मानिए।।

वो आए नहीं करके वादा हर बार की तरह हमें मिलने। इल्जाम किस पर मगर थोपना है बस आप ये सोचिए।।

रात,दिन कटते नहीं सो हलाल अब खुद ही हो रहे हम।
कौन जाने हमको कब तलक ये हलाहल निगलना पड़े।।

जब उसकी ही रजामंदी पर चलती हों वक्त की सुईयां। बिंदास तमाशा खुद का "उस्ताद" बनते हुए देखिए।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 11 June 2023

एक उत्तराखंड देवभूमि पर गीत (महिलाओ पर)

एक पहाड़ी गीत महिलाओ की स्थितियों पर
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मठु-माठ* भलि के उतरिए पहाड़ ओ बैना**।*धीरे-धीरे ** बिटिया/बहन
मठु-माठ भली के उतरिए पहाड़।।
जाडें छी अगर तू भांवर* या फिर मीना-बाजार।*प्रदेश 
झन फोड़ लिए ओ चेली तू अपुण यो कपार*।।*माथा
मठु-माठ भलि के उतरिए पहाड़ ओ बैना।
मठु-माठ भली के उतरिए पहाड़।। 

मैश* कां रह गईं सब जाग छन आदमखोर बाघ।*आदमी
तू नादान,जमाड़ थें अनजान वां रुणी* सब घाघ।।*रहते
मठु-माठ भलि के उतरिए पहाड़ ओ बैना।
मठु-माठ भली के उतरिए पहाड़।।

उत्तराखंड छू देवभूमि हमार लिजी धरिए तू येक लाज।
डबलनैक* टोटा जरूर भे पर यंई छू हमर असल मान।।*रूपया 
मठु-माठ भलि के उतरिए पहाड़ ओ बैना।
मठु-माठ भली के उतरिए पहाड़।।

नलिनतारकेश

Saturday, 10 June 2023

हों प्यार की बातें

हों प्यार की बातें,और नहीं हों जगजाहिर,ऐसा कैसे होगा।
फूल खिलें गुलशन में,और महके न जग,ऐसा कैसे होगा।।

रात की छोड़ो,दिन में भी तब तो ख्वाब सुनहरे,दिखते हैं। फिर हर आहट,दिल न धड़के जोर-जोर,ऐसा कैसे होगा।।

सांझ-सवेरे,अपने को तो हर दिन लगते,सारे एक जैसे ही।
लगन लगी हो इश्क की सच्ची,तब न कह,ऐसा कैसे होगा।।

जेठ की धूप सिर पर रहे,और पांवों के नीचे अपने अंगारे हों।
जो बहे नहीं फिर भी अंतर प्रीत का झरना ऐसा कैसे होगा।।

कोलाहल जग का यह सारा थक-हार कहीं पर जा दुबकेगा।
नयन-द्वीप पे देख,रस-अठखेली ऐसा न हो,ऐसा कैसे होगा।।

नलिनतारकेश

Friday, 9 June 2023

537- ग़ज़ल:- टेढे मेरे रास्तों में

टेढ़े मेढ़े रास्तों में जिंदगी के बहते रहे।
गुजरे जिधर से खुशियां बिखेरते चले।।

तूफान तो आए कदम दर कदम परखने।
बेपरवाह मस्त चाल हम तो चलते दिखे।।

रंजिश,बद्दुआ किसी के लिए भी क्यों हो।
गूंजे फ़िजा में बस सबके साथ हंसी-ठठ्ठे।।

दूर होकर भी कहाँ उससे हुआ भला फासला।
दिलों के तार जब रहे एक सुर-ताल मिले हुए।।

"उस्ताद" मंजिल की तलाश में भटकना क्यों।
हर कदम जब तेरी ही चौखट पर सजदा करे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 5 June 2023

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून
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छिति,जल,पावक,गगन,समीर पंच-तत्व जो हैं प्रकृति के।
इनको ही लेकर रचना की है अद्भुत सृष्टि की परमेश्वर ने।।

दुर्भाग्य देखिए,मगर इनको ही,दूषित करते हम लोभ में। 
यूँ ये वैसा ही है,जैसे काटे वृक्ष कोई,उस पर खड़ा हो के।।

अपनी आँखों पर बांध पट्टी दोषारोपण बस दूसरों पे। जाने कब साहस जुटाकर नजरें मिलाएंगे हम स्वयं से।।

हरी-भरी नयनाभिराम धरा को,धकेलते भला क्यों चिता में। 
सोचिए गंभीरता से,क्या भविष्य को यही सौंपेंगे,विरासत में।।

अभी भी न संभले,न लिया संज्ञान यदि हमने इस आचरण पे।
अकाल मृत्यु के जिम्मेदार होंगे,अवश्य स्वयं अपने आप से।।

नलिनतारकेश

Friday, 2 June 2023

क्या खोया क्या पाया

देह-गेह की षष्ठी-पूर्ती चौखट पर,होकर मैं खड़ा।
करूं चिंतन,क्या खोया और भला क्या पा सका।।

जीवन की कृपा सौगात का,दुर्लभ अवसर जो अन्ततः मिला। 
अनेक योनियों में विचरता,तब कहीं मानवीय रूप ये मिला।।

हरि कृपा का यह चमत्कार,पर क्या वस्तुतः भुना सका। तर्क-कुतर्क करते-करते,मैं तो स्वयं से ही हूँ चकरा रहा।।

अपने भीतर अनुसंधान के निमित्त,जो मुझ को भेजा गया। 
दुरूह परिश्रम कोल्हू के बैल जैसा,परिणाम कहाँ मैं 
पा सका।।

रूप-यौवन,पद-प्रतिष्ठा,धन-दौलत रहा प्राप्ति का नशा। अखिल ब्रम्हांड के नायक को मैं कहाँ,अतः खोज सका।।

यद्यपि हूँ मैं तेरे ही भीतर,कान में उसने मुझसे था कहा।
पर हतभाग्य ये कहाँ,परिस्थिति का चक्रव्यूह तोड़ सका।। 

देख पाता सहस्त्रदल- "नलिन" को,अष्टचक्र जो भेद सकता।
अभी तो इस सोपान आकर कुंठित सा हूँ निरूपाय खड़ा।।

नलिन@तारकेश

सपाट गंगा सी

खुद को पहेली न बनाएं तो जिन्दगी समझ आ जाएगी।
सीधी,सरल,सपाट-गंगा सी फिर वो साथ बहती जाएगी।। 

जाने क्यों हर किसी को है अभिमान अपने दशशीश पर।
ऐसे तो मगर दिन-ब-दिन बात और भी बिगड़ती जाएगी।।

यूँ तो हैं रिश्ते नाते दो हाथ से बजने वाली ताली के जैसे।
मिला जो नहीं साथ अगर तो लय-ताल बिखरती जाएगी।।

दो कदम हम-तुम चलें लक्ष्य पर यदि आस और विश्वास से।
मंज़िल हो सातवें आकाश पर तो वो भी निकट आ जाएगी।।

संकल्प,उत्साह से रचे-बसे नव परिधान पहन यदि हम बढ़ें। 
अवश्य मूर्छित पड़ी किस्मत को भी संजीवनी मिल जाएगी।।

नलिन@तारकेश 

Thursday, 1 June 2023

सांवरे के रंग में

सांवरे के रंग में अपने बावली जब से हो गई। 
प्रीत जन्मों की पुरानी अपनी वो याद आ गई।।

सरताज है वो तो अलबेला इस सारे जहाँ का।
मैं उसकी रही हूँ सदा से वो बात याद आ गई।।

शायद हो गई थी उससे किसी बात पर अनबन।
चलो कम से कम आज गलती वो याद आ गई।।

अब तो रोज रास-रंग होगा धाम में संग-साथ उसके।
झूम-झूम गाने की पुरानी नोकझोंक वो याद आ गई।।

"नलिन" नैनों में सपनो की चढ़ी जो इंद्रधनुषी चटख बेल।
 खुमारी जो उतरती नहीं लो हकीकत में वो याद आ गई।।

नलिन@तारकेश