Wednesday, 26 December 2018

गजल-65 झूठ बोलने का

झूठ बोलने का सलीका भी आना चाहिए।
गैर ना सही कभी खुद को बहलाना चाहिए।।

तुम रहो खलवत*या जलवत**जिस किसी हाल में।*तन्हाई में **भीड़ में
इनायत को जरा ना रब की भुलाना चाहिए।।

चंदन रगड़ से ज्यादा शोला बन जाएगा। बेसहारा,तंगदस्त* को ना सताना चाहिए।।*अभावग्रस्त

यहां आगे तो कोई जरा पीछे जाने वाला।
दुनियावी सदॆ रिश्तों को तो बस मिटाना चाहिए।।

काफी मुश्किल होते हैं हालात "उस्ताद" कभी।
फौलाद बन के मगर बेखौफ टकराना चाहिए।।

गजल-63 तुम्हारा जब भी कभी

तुम्हारा जब भी कभी नाम लिया हमने।
खुद पर ही बड़ा एक अहसान किया हमने।।                                                          

हाल दिल का लिख तो दिया तुझे हमने।
ख़्वाब कुछ तो नया सजा लिया हमने।।

ले हाथों की सब लकीरों को मिटा चुके हम।
बता क्या ना किया तेरे लिए छलिया हमने।।

मिटाने को दूरियां सोच लेकर जब हम बढे।
महज मुहब्बतों का वास्ता तब दिया हमने।।

बना कर तुझको अपना हमकदम देख यारब।
अंगूठा दिखाया नसीब को बढिया हमने।।

सिले लबों को खोल कर "उस्ताद" आज।
बहा दिया मुहब्बत का दरिया हमने।।

गजल-64 भले दिखती है छोटी

भले दिखती है छोटी हमें ये जितनी जिंदगी।
दरअसल है ये मगर लाफानी* उतनी जिंदगी।।*अन्तहीन

पांच अनासिर* से है देखो ये बनी जिंदगी।*तत्व
खुदा के नूर से है सारी ये सनी ज़िंदगी।।

धागे में जैसे मोती के दाने पिरोये हों।
बहुत खूबसूरत है ये प्यारी अपनी जिंदगी।।

अलहदा*है बड़ी इसकी सिफत क्या कुछ बयां करिए।*विशिष्ट
मातम और मौजे-रौनक की है चाशनी जिंदगी।

होशियारी से तौबा"उस्ताद"अब तुम भी कर लो।
बड़े-बड़ों को पिलाती है पानी ठगनी जिंदगी।।

Tuesday, 25 December 2018

गजल-62 फूलों सा खिलकर

फूलों सा खिल कर जो बस खुशबू सा बिखर जाए।
मिलेंगे चाहने वाले चाहे वह जिधर जाए।।

सफर में होंगी तो तकलीफें चाहे कुछ भी करो।
पकड़ राह तू फिर चाहे इधर जाए या उधर जाए।।

चलो इस कदर खूबसूरती से जिंदगी के सफर में ।
पांव के निशान पर तेरे किसी की ना नजर  जाए।।

दुनिया है ये उसकी कटे पंख जो हौंसले भरे।
नहीं उसके लिए जो हर कदम पर ठिठक कर डर जाए।।

ना उधो से लेना और ना माधो का देना।
जनाब फिर भला कहो "उस्ताद" किसके घर जाए।।

Saturday, 22 December 2018

गजल-59 पोपला मुंह

पोपला मुंह चबाने को सब मचलने लगा।
अब बुड्ढा भी बच्चों से बढ़ थिरकने लगा।।

जुल्फों की तारीफ में पढता है कसीदे।
आए एक बाल खाने में तो उखड़ने लगा।।

दुनिया को देता है सीख बैराग की।
देखी कहीं नाज़नीन तो मचलने लगा।।

चलता हो पकड़ कर वो चाहे लाठी।
सफेद बालों में डाई रचने लगा।।

हिंदी से छत्तीस का आंकड़ा बना लिया।
नैन-मटक्का अंग्रेजी से करने लगा।

जंगल में आये हैं जब से अच्छे दिन।
मीटू से अब तो हर शेर डरने लगा।।

"उस्ताद"का हाल,हाथ कंगन क्या देखो।
चेलों से गुर उस्तादी के सीखने लगा।।

Friday, 21 December 2018

गजल-58 प्यार बाहों में

प्यार बाहों में जकड़ने से नहीं आता।
बस सांसो में सांस भरने से नहीं आता।।

प्यार तो है बड़ी अलहदा सी शय।
यह इजहार करने से नहीं आता।।

दूर रहकर भी बरकरार रहता है प्यार।
यूं नजदीक पर कभी सटने से नहीं आता।।

आसमान की तरह खुला होता है यह तो।
कुएं के मेंढक सा उछलने से नहीं आता।।

समंदर की तरह शांत,गंभीर है यह।
मगर झरने सा मचलने से नहीं आता।।

"उस्ताद"डूबा है जिस राम के प्यार में।
वो ठौर और की पकड़ने से नहीं आता।।

गजल-57 रूह में उसे जो

रूह में उसे जो शामिल किया।
जिस्म कहां फिर दाखिल किया।।

दूर रहकर भी शिद्दत से चाहा।
यादों को उसकी ही मंजिल किया।।

हमें पता था कब प्यार का ककहरा।
उसने ही इसमें आलिम-फाजिल* किया।।
*विद्वान
ख्वाबे हकीकत एड़ी-चोटी लगा दी।
कौन कहता है प्यार ने काहिल किया।।

लगा दिया रोग अजब कैसा ये हमको।
खास सूची जो अपनी शामिल किया।।

बना जो "उस्ताद" नजरे नूर सबका।
इनायत खुदा की जो इस काबिल किया।।

Wednesday, 19 December 2018

गजल-56 हमें तो पीना

हमें तो पीना मंजूर चुपचाप जहर है।
बहस बेवजह करना लोगों से दूभर है।।

हंसते हुए आंसू,रोने में हंसी आने लगी।
कहो पागलपन है कि यह तवाजुन* भरपूर है।।*संतुलन

अश्क भी हमारे हजारों रंग समेटे हुए।
खीझ,प्यार,गुबार दिखे जिनमें बराबर है।।

कहो किसे हम चाहें किससे यहां नफरत करें।
निभाने का किरदार यह तो बस एक अवसर है।।

आने से है मौज* उठी या मौज* से वह आया।*आनन्द
छोड़ो कैसे या क्यों मिल गया रब ये सबर है।।

वो जब यक़ीन मुझ पर ही कतई नहीं करता।
"उस्ताद"-ए-इल्म की कहो उसे क्या कदर है।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 18 December 2018

गजल-55 फूलों की बात

फूलों की बात करते हो और कांटों से बचते हो।
यार तुम भी जाने क्यों असल जिंदगी से डरते हो।।

अपने छालों की शिकायत तुम बेवजह करते हो।
दिली आशना की उससे जो अगर बात रटते हो।।

वो ना मिला तो क्या जिंदगी दोजख* बनाओगे।*नरक
आगे बढ़ क्यों नहीं पत्थर मील के गाड़ते हो।।

बहुत सफाई से नापाक*खून से रंगे हाथ।*अपवित्र
दस्ताने उतार मेहंदी रचे हाथ कहते हो।।

हकीकत तो क्या ख्वाब में भी अब नहीं दिखते।
रिश्ते बेफजूल भला क्यों ऐसे जोड़ते हो।।

इस कदर उसके तसव्वुर* में दिन-रात रहने लगे।*कल्पना
आईना देख"उस्ताद"खुद के सजदे करते हो।।

गजल-54 जानता हूं जो लिखा

जानता हूं जो लिखा वो रेत पर लिखा।
सच है मगर जो लिखा उसकी नजर लिखा।।

हवाओं ने मुखबरी की मेरे इश्क की।
वरना तो एहतियातन सब छुपा कर लिखा।।

जुगनू भी खूब काम आया घुप अंधेरे में। किसने उसे पर कहो उजालों का चारागर* लिखा।।*डाक्टर

ता उमर जो अना* की खातिर अपनी जूझती रही।*स्वाभिमान
खुदा जाने क्यों सबने उसे अबला कातर लिखा।।

जर्रे-जर्रे में जब है उसकी  ही तस्वीर ।
वैसे तो भला फिर कहो क्या कुछ इतर लिखा।।

कायनात को सारी सजा दिया महज तसव्वुर* से।*कल्पना
"उस्ताद"उसे तभी तो दिल अजीज बाजीगर
लिखा।।

Sunday, 16 December 2018

गजल-53 दिल नहीं अपना ये तो

दिल नहीं अपना ये तो एक गहरा सागर है। बेशुमार जिसमें हीरा,मोती,जवाहर है।।

आओ हम डूब कर इसमें देखें तो सही।
वरना तो इसने हाथ से जाना बिखर है।।

सांसें भी कब रही है मोहताज किसी की। आज हैं तो जी ले काहे कोई कसर है।।

कहने को यहां कोई किसी का रकीब* नहीं।
*शत्रु
पीठ पर मगर सबके दिखता घाव खंजर है।।

होंगी दुनिया में एक से एक नायाब शै*।*वस्तु/चीजें
हमें तो हर हाल प्यारा अपना घर है।।

दुनिया एक तमाशा जादू भरा लगता।
हर बड़ा "उस्ताद" भी जहां बेअसर है।।

Thursday, 13 December 2018

गजल-50 हवाओं के नाम

हवाओं के नाम लिख दी है मैंने वसीयत अपनी।
इठला के नसीब पर महकती तभी तो फकत अपनी।।

फूल,दरख्त,जमीं,आसमां कुल जमा यानी कायनात के।
मिजाज हैं बड़े अलहदा जो देखी मुझमें तबीयत अपनी।।

हर किसी को यूं तो बख्शी परवरदिगार ने अजीम शख्सियत।
बहुत कम हैं वो लोग जो जानते हैं नायाब कीमत अपनी ।।

लाख लगाए मुखौटे या करे वो गजब की अदाकारी।
दरअसल जानता तो है भीतर से सब हकीकत अपनी।।

चाहे कसमें खा लें कितनी भी रंजोगम साथ निभाने की।
मानो या ना मानो काम तो आती है बस इबादत अपनी।।

वही रंग,वही शोखी फकीराना बहती अल्हड़ सी मस्ती।
"उस्ताद"अब तो पक गई उमर कहां बदलेगी आदत अपनी।।

Wednesday, 12 December 2018

श्रीराम-जानकी विवाह

श्रीराम-जानकी विवाह की बधाई।

श्री राम-जानकी विवाह की मंगल घड़ी पुनः आ गई।
चराचर समस्त जगत अह्लाद भरी रिद्धि- सिद्धि छा गई ।।

तिथि पंचमी,मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की देखो जब पंचांग आ गई।
दसों दिशा बधाई हो बधाई,ध्वनि पुनीत गगन-मंडल ये छा गई।।

श्री राम की भक्ति-शक्ति स्वरूपा मां जानकी वामांग जब आ गई।
भक्त उर,साकेत-धाम बन,नवनिधि जैसे हर ओर छा गई।।

मन-मयूर अधॆ-वर्तुल खोल पंख झूमे जैसे पावस ऋतु ही आ गई।
"नलिन"भाव-विह्वल,कंठ गदगद, रसभरी केकी-ध्वनि छा गई।।

@नलिन #तारकेश

Tuesday, 11 December 2018

गजल-49 जब से आया हूं तेरे शहर से

जब से आया हूं तेरे शहर से।
नशा तारी* है तेरी मेहर** से।।
*समाधि सी अवस्था **दया

तितलियों सी यादें मंडरा रहीं।
मिटती नहीं अब अपने पैकर* से।।
*जिस्म

ख्वाब था या हकीकत क्या कहूं।
कुछ था मिला जो मुझे मुकद्दर से।।

दिल में एक अजब मौज,सुकूं नेमत भरी है।
जिल्लत,अवसाद,रंज अब सभी छूमंतर से।।

जाने पहचाने रास्ते कहां थे "उस्ताद" के।
खुलते रहे मगर पतॆ दर पतॆ सफर से।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 9 December 2018

गजल-47 याद मेरी किसी को ना

याद मेरी किसी को ना सताया करे ।
आए तो बस खुदा का जिक्र आया करे।।

हम तो सभी हैं उसी खुदावंद की औलादें। माया मगर अपनी इस पहचान को भुलाया करे।।

आईना जो देखूं तो तुम ही दिखो मुझे। मोहब्बत का यही सुरूर बस छाया करे।।

हमारे बीच दरअसल फासला है ही कहां।
दिल से दिल जो एक दूजे का मिल जाया करे।।

लगती हैं "उस्ताद" बातें तुम्हारी अटपटी।
पर चलो एक बार इन्हें अमल तो लाया करें।।

Saturday, 8 December 2018

गजल-46 दिख गए चेहरे तो

दिख गए चेहरे तो दुआ-सलाम हो गई।
वरना तो कहां बातचीत आम हो गई।।

कनखियों से देख मसौदा बात का समझ लेना।
बीते जमाने की बात अब तो हराम हो गई।।

रंग हमारी नई पीढ़ी के अजब-गजब हैं देखिए।
दूध के दांत टूटे नहीं मुहब्बत तमाम हो गई।।

हर कोई अपने ही गुरूर में खुदा बन रहा। इज्जत यूं सबकी तार-तार नीलाम हो गई।।

किस से कहें "उस्ताद"दिल का हाल मुश्किल बड़ी।
सांसे भी हर शख्स की जब से गुलाम हो गई।।

Friday, 7 December 2018

गजल-45 हर रोज दिले-आईने में

हर रोज दिले-आईने में खुद को देखता है।
यूं ही तो नहीं हुजूर वो हर वक्त महकता है।।

सुरूर रग-रग में जब उसका गहरे उतरता है।
खुदाई-रजा* वो सदा इत्तेफाक** बरतता है।।
*ईश्वरीय विधान   **अनुरूपता

अहम को मिटा दे या फैला दे कायनात तक।
आदमियत को तभी आदमी असल समझता है।।

राजे-अबद* बहुत आसां है निभाना उसके लिए।*अमरता
मसावात*,खुलूस**,ईमां को जो साथ रखता है।। *समानता **प्रेम

इब्तिदा है ना ही इंतिहा है उसके बेशुमार जलवों की।
बमुश्किल उसे कोई नियामत* से उसकी जानता है।।*कृपा

कठपुतली की तरह नचाता है वो हम सभी  को।
यूं ही नहीं उसे हर कोई "उस्ताद" कहता है।।

Wednesday, 5 December 2018

गजल -2

ना तुम,ना दिल की वो धड़कन ही काम आई।
लो आज फिर तन्हाई की वही शाम आई।।

सोचा था देखेंगें ख़्वाबों में तस्वीर तुम्हारी। 
हकीकत में कहां मगर नींद बिछुड़ कर एक गाम आई।।         

सुना तो था हमने हिना है एक दिन रंग लाती।
खोटे नसीब पर कहाँ जरा कहो लगाम आई।।

हर दिन,हरेक रात बड़ी मुश्किल से कटी कसम से।
ना जाने क्यों भला हमें ना मौत तमाम आई।।

उनकी बेरुखी भला अब कहाँ है किसी से छुपी।
"उस्ताद" फिर भी मगर उन्हें ना आराम आई।। 

Tuesday, 4 December 2018

राधा ने प्रीत की

राधा ने प्रीत की सुधा-रस सौगात जो कृष्ण को सौंप दी।
अधर-धर,वंशी-धुन,कृष्ण ने वह सहज विश्व को सौंप दी।।

प्रीत की अपरिमित,अकूत बौछार से सृष्टि ओर-पोर जब भीग गई।
प्रकृति-पुरुष की परमानंद प्रीत से पोर-पोर वह तो फिर भीग गई।।

समस्त जड़-चेतन जगत की भाव-दशा,चेतन- जड़ में परिवर्तित हो गई।
अकल्पनीय,अकथनीय,असमंजस भरी मनो- दशा सबकी अजब हो गई।।

ठगे-बौराए सभी, कुछ बुझते कुछ अनबूझे से रास-रंग आकंठ डूब गए।
पहचाने कौन-किसे,जड़-चेतन सभी समवेत राधा-कृष्ण स्वरूप डूब गए।।

देखो अलख जग गई प्रीत की,ऐसी मदहोशी सर्वत्र सृष्टि में छा गई।
राधा-कृष्ण,कृष्ण-राधा नाद-ध्वनि गूंज-गूंज कण-कण में छा गई।।

भावावेश रस-ताल भरी लास्य-गति प्रतिक्षण ही जब बहने लगी।
उमंग,उल्लास,उध्वॆ-प्रीत,उत्प्लावन-मति "नलिन"बहने लगी।।