Sunday 30 September 2018

किसी को क्या पड़ी

किसी को क्या पड़ी सुने कहानी तेरी।
सब हो गए तंग देख-सुन नादानी तेरी।।

होगी  उठती मौज दिल-ए-सागर में।
है ये कशमकश उसकी नहीं तेरी।।

रास्ते तो मिलते हैं जाकर मुकाम सब एक ही।
जाने क्यों जेहन पल रही,सोच बौनी तेरी।।

आएगा क्यों कोई महफिल में बता तो।
जब जान रहे सब,रजा कतई नहीं तेरी।।

लाख अटकलबाजियां लगाते रहें जिस्मानी।
वो जानें कैसे उलफत है रूहानी तेरी।।

अलहदा है सोच ज़माने से कहीं आगे।
भला क्या दूं, हूं सोच रहा सानी तेरी।।

छू रही दुनिया आसमान की बुलंदियां।
"उस्ताद" छोड़ो भी ये अब मेरी-तेरी।।

BLOG: http://astrokavitarkeshblogspot.com

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