Tuesday, 18 September 2018

नर से नारायण

             नर से नारायण
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सांसे कर देती है गंध बांवरी जब वो सुर में बहती हैं।
लेकिन बोलो कितने दिन जीवन गति एक सरीखी रहती है।।

देह का होता है आकर्षण इसमें कोई संदेह नहीं है।
लेकिन ये पूरा हो सौ आने सच इसका भी आधार नहीं है।।

एक समय आता है जब अपनी ही सांसे बोझिल कर देती हैं।
भला कहो हमको तब यौवन की स्मृतियां सुख कहां देती हैं।।

धरा-भोग के पीछे मानव पुरुषार्थ तेरा ही रहता है।
कर्मयोग वो ही उचित पर जब वो निष्काम ही रहता है।।

धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष के पथ पर जब-जब मानव पग बढ़ता है।
पंचतत्व बनी देह में कद फिर नर से नारायण बढता है।।

@ नलिन #तारकेश

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