Thursday, 27 September 2018

गजल-242: कौन हबीब है

तेरे शहर का मिजाज बड़ा अजीब है।
ना जाने कौन दोस्त,कौन हबीब*है।।*मित्र

हमदर्दी जितना जता रहा जो शख्स।
रूलाने की वो ढूंढता नई तरकीब है।।

जो सोचता हर हाल में सबका नफा।
कहो नजरिया उसका कहाँ गरीब है।।

अमीर तो है उड़ा रहा मौज ही मौज।
बस जीना आम आदमी का सलीब*है।।*फांसी

भुलाना चाहूँ भी तो कहाँ भूला सकता उसे।
हर-घड़ी,हर-साँस वो रहा बहुत करीब है।।

फल,फूल उगेंगे कहाँ से जनाब जरा सोचिए तो।
रिश्तों के दरख्त का बना बोनसाई तहजीब है।।

यूँ तो कहता है हर कोई खुद को आदमी। सबका कहाँ"उस्ताद"मगर ऐसा नसीब है।।

@नलिन #उस्ताद

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