Tuesday, 11 September 2018

निश्छल हंसी

निश्छल हंसी जो दिखती है जहां भी कहीं।
हिमशिखर से बहती लगे गंगा भी वहीं।।

आंखों में प्यार का सागर उमड़े जहां।
सारी दुनिया की दौलत है समझो वहीं।।

बिठा कंधे पर अपने से भी ऊंचा कर दे।
मां-बाप-गुरु तो हमारे हैं बस सच्चे वही।।

दिल से मिलाकर दिल जो सबसे बात कर ले। अमीरी तो उस से बढ़के कुछ होती नहीं।।

सत्कार मिले या लाख बेइज्जती कहीं भी।
जो हजम कर जाए समझना फकीरी है वही।।

विषाद,दु:ख की अथाह काली झील में। खिलखिलाता दिखे तो होगा"नलिन"वही।।

@नलिन #तारकेश

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