Tuesday, 25 September 2018

लुटिया डुबायी

ग्रामाफोन की सुई जैसी जुबान अटक जाती है उसकी।
बौड़म सोचता है काबिलीयत लाजवाब बड़ी है उसकी।।

रहने को घर मयस्सर नहीं कहां तो यहां आम आदमी को।
बंदीखाना भी हो पांच सितारा ये तलामली* है उसकी।।*लालसा

जूते की नोक पर रखते थे जो हुजूर नौकर- शाही को।
सिखा रही अब जनता सबक तो फजीहत हो रही है उसकी।।

बड़े-बड़े तुरॆमखां भी लगता है दिमाग से पैदल हो गए।
जानते-बूझते उन्हें चापलूसी ही सूझती है उसकी।।

झूठी शोहरत,माल-असबाब के लिए पगला रहा है आदमी।
हवस को भुनाने अजब कारगुजारी गुल खिला रही है उसकी।।

डॉक्टर,वकील,नेता सभी तो लगे हैं खून चूसने में।
लिखा शायद हाथों की लकीरों में खुदा ने ही है उसकी।।

रिश्ते-नातों का बना माखौल सा धज्जियां उड़ा रहा है।
"उस्ताद" ओछी हरकतों ने खुद लुटिया डुबायी है उसकी।।

@नलिन #उस्ताद

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