Wednesday, 19 November 2014

262- साईं तुम्हारी लीला

साईं तुम्हारी लीला के आगे मैं नतमस्तक भरपूर हूँ
भेदभाव से मुक्त कृपा पर तेरी मैं तो भावविभोर हूँ।

यूँ तो पत्ता पत्ता भी इस गुलशन का तेरा ही एक रूप है
फिर भला मुझे क्यों लगता जीव ये तुझसे कुछ दूर है।

जब तक तू खुद ही अपना रूप मुझे न समझायेगा
मेरी नन्ही अल्प बुद्धि में कहाँ समझ ये आएगा।

बार-बार सो विनती करता अपना दुखड़ा हूँ रोता रहता
एक बार बस बना के अपना झंझट सदा ख़तम कर देता। 

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