Friday, 14 November 2014

258 - राम मैं तो हूँ मूढ़ता की खान

राम मैं तो हूँ मूढ़ता की खान।
तेरी कीर्ति का कैसे करूँ बखान।।

कहीं अंजलि में आएगा समुन्द्र।
वो होगा अगर तो होगा बस एक बूँद।।

पर तुझे कहाँ भला है इससे वास्ता।
तू तो है बस ताकता, बालक का रास्ता।।

वो फिर पुकारे चाहे तोतली जुबान में।
सुनता है तू मगर प्यार भरे अंदाज़ में।।

तेरी यही अदा तो है मुझे भाती।
निसंकोच तभी तुझसे है मेरी विनती।।

From my book SAI KRIPA YACHANA

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