Thursday, 13 November 2014

257 - युगदृष्टा,युगसृष्टा,हे राष्ट्र पुरुष हमारे

युगदृष्टा,युगसृष्टा,हे राष्ट्र पुरुष हमारे। 

अर्पित तुम्हें सुमन श्रद्धा के,करें विश्व-जन सारे।।

      स्फटिक कांति लिए भाल में 
      धूमकेतु बन जग में चमके। 
      लाल जवाहर भारत माँ के 
     तुम सबकी आँखों के तारे। 

युगदृष्टा,युगसृष्टा,हे राष्ट्र पुरुष हमारे....... 


वराह अवतार तुल्य हो तुमने 
केवल रखकर तीन पगों में। 
धर्मनिरपेक्षता,समाजवाद व लोकतंत्र से 
त्रिलोकों के छोर  मिलाये। 

युगदृष्टा,युगसृष्टा,हे राष्ट्र पुरुष हमारे....... 


पंच इन्द्रियों की ज्या खींच के 
पंचशील के बाण चलाये। 
दुर्जेय,दुष्ट महाशक्ति से ऐसे 
मानवता के प्राण बचाये। 

युगदृष्टा,युगसृष्टा,हे राष्ट्र पुरुष हमारे....... 


एकता,अखंडता की जवाहर-ज्योति बने 
सदा रहे हो सन्मार्ग दिखाते। 
पग पर पग रखकर ही तुम्हारे 
साकार हुये सब स्वप्न हमारे।  

युगदृष्टा,युगसृष्टा,हे राष्ट्र पुरुष हमारे....... 

नेहरू तो तुम क्या दिव्य पुरुष थे 
नहीं-नहीं तुम तो तो केवल थे। 
कर्म यज्ञ के ऐसे साधक विरले 
ऊर्जा पर जिसकी सहस्त्र सूर्य भी फीके। 

युगदृष्टा,युगसृष्टा,हे राष्ट्र पुरुष हमारे। 

                                  अर्पित तुम्हें सुमन श्रद्धा के,करें विश्व-जन सारे।।


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