Monday 10 November 2014

254 - रूह के श्रृंगार की बात

मौसम तो बदलते जाएंगे साल दर साल यूहीं
दिलों में बहार के अब तराने ज़रा छेड़िये।

मंजिलें दूर हैं भटक रहे हैं लोग सभी
स्नेह,भाव,विश्वास से फ़ासलों को पाटिए।

रंग व्यक्तित्व के सभी अलग पर हैं बेशकीमती
इन्द्रधनुष बना इन्हें साथ-साथ जोड़िये।

जोश,जज़्बा हो अगर तो बदल सकती है तकदीर भी
चुनौतियों के जाल को बस जरा तदबीर से खोलिए।

जुल्फ के श्रृंगार की बात तो बहुत हो गयी
रूह के श्रृंगार की बात भी अब जरा कीजिये। 

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