Monday, 17 November 2014

260 - जय-जय माँ "सिद्धि"भवानी





जय-जय माँ "सिद्धि"भवानी,रखना लाज हमारी
तेरे "नलिन" चरण में जाते, हम सब हैं बलिहारी।

ऊँचे उत्तंग शिखरों पर,शिव "बाबा" संग है रहती
शिशु की एक पुकार पर,झट सुध लेने आ जाती।

पुत्र- कुपुत्र हो तब भी तो, अपने हाथ खिलाती
कितने नानाविध व्यंजन से,फौरन थाल सजाती।

कहीं आँख पड़े धूल कण ही,व्याकुल तो भी तू हो जाती
आँचल से अपने फूँक-फूँक कर, पीड़ा दूर शीघ्र भगाती।

लेकिन इसके बाद भी तेरी, कहाँ हमें है सुध आती
सुख में नित भूले तुझको,बस दुःख में याद तू आती।


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