Saturday, 25 October 2014

248 - कृपा-प्रसादी

यूँ मुझे अभी तो लगता यही है
कि मेरे हाथ में कुछ भी नहीं है।

पर अगर किंचित भी  है कहीं
कर्म की कुंजी मेरे पास भी
और बदल सकता हूँ मैं रास्ता।

तो बस यही है निवेदन मेरा
देना मुझे शक्ति और भरोसा।

कि कभी गलती से भी न
अंहकार जरा सा पाल लूँ।

जो भी करूँ, एक तो बस
अपने को तेरे लायक बना सकूँ।

दूसरा यही कि कुछ  भी करूँ
उसे कृपा-प्रसादी तेरी मान सकूँ। 

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