Thursday, 23 October 2014

247 - प्रकाश-उत्सव



    

प्रकाश-उत्सव है बड़ा ही अभिन्न अंग हमारा
उत्साह-उल्लास बन दौड़ता धमिनियों में सारा।

वस्तुतः हम सभी तो हैं प्रकाश के ही पुत्र
प्रकाशस्रोत से ऐसे जुड़े जैसे मणि-सूत्र।

फिर भला हम क्यों व्याकुल, विकल
संत्रस्त से अपनी मूल चेतना रहे भूल।

गहन,तमस आच्छादित रात्रि  है भला कहाँ
दसों-दिशा आलोकित स्वयंप्रभा बस है यहाँ।

हम तो हैं सदा अजर, अमर प्रकाश पुंज
झूमते-विचरते श्रीहरि निकेतन गली कुंज।

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