Friday, 3 October 2014

235 - हर पल मैं हारुँ

हर पल मैं हारुँ जीवन में
हर छन बस तू ही जीते।

यही चाहता हूँ साईं तुझसे
और न इच्छा करुँ मैं मन में।

मेरा सोचा जो कुछ भी होगा
वो तो तीता-रीता होगा।

जो कुछ तू सोचे मेरे खातिर
वो ही सच्चा-मीठा होगा।

मैं चलूँगा खुद के बल से
तो थक जाऊँ कुछ ही पग में।

ले कर चले, हाथ पकड़ जो
सप्तलोक करुँ मैं सैर मजे में। 

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