Tuesday, 14 October 2014

242 - हर प्रश्नचिह्न मिटा दिया



होठों को जुम्बिश देकर तुमने
नाम मेरा जो पुकार लिया
मुझ प्यासे पथिक को तुमने
मरुथल में अमृत पिला दिया।

मैं क्या जनता?नाम तुम्हारा
जबकि खुद को ही नहीं पहचानता
तुमने बेवजह ही लेकिन मुझको
कृपापात्र अपना बना लिया।

जीवन में काली रातें आयीं
एक नहीं कई बार घनी
पर तुमने सदा रवि बन के
तम से मुझे उबार लिया।

क्या कहूँ?कैसे कहूँ?कितना कहूँ?
हर बार सोच-सोच थक जाता हूँ
पर तुमने अब बना के अपना
हर प्रश्नचिह्न मिटा दिया।  

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