Monday 6 October 2014

ग़ज़ल-60 दरदे पैमाना

दर्दे पैमाना पिलाते हैं मुस्कुरा के वो
कहते हैं मगर गुस्ताखी माफ़ हो।

मुहब्बत की है ये इंतिहा यारों
दर्दे दिल बढे पर लब सिला हो।

दर्दे सुकून को हम आये थे इस ओर
खबर किसे थी दर्द और बढ़ाते हो।

छलछला के गिरे पता चले तभी तो
पैमाने का पैमाना अब कहाँ भला हो।

ज्वार उठेगा मयखाने में "उस्ताद" जो
बह जाए साकी,शराब और सभी जो हो।

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