Friday, 21 March 2014

सिय राम मय सब जग जानि

जड़ चेतन के कण -कण में।
तुम्ही व्यापते हो सर्वेश्वर।।
रूप तुम्हारे कौन गिन सके।
तुम अनंत हो जगदीश्वर।।
तेरी सभी छवि को वंदन मेरा।
करता हूँ नित हे त्रिलोकेश्वर।।
कहाँ विलग हूँ मैं भी तुझसे।
जान गया हूं मैं परमेश्वर।।
भाव बना रहे यही अभ्यंतर।
इतनी कृपा कर दे विश्वेश्वर।।
@नलिन

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