Thursday, 20 March 2014

शिव तो हैं

हमारे शिवशंकर तो हैं काल के भी काल
काल से परे, कालातीत-साक्षात महाकाल।।
जो लांघने में हैं सदा,सहज-सक्षम निर-विकार।
अतीत,भविष्य और वर्त्तमान - तीनों काल।।
अखंड विश्वास के मूर्तिमान अप्रतिम रूप।
कल्याणकारी हैं सदैव ही आप तो अनूप।।
राम निष्काम,निमॆल,नारायण तत्त्व का भला।
तभी तो ठौर है कहाँ कोई भी जान सकता।।
क्योंकि वो हैं बसते विश्वास के साकेत-धाम।
यानि कि अपने भोले बाबा के हृदय ललाम।।
अतः जो हैं जुड़े निष्कपट विश्वास के शिव भाव।
वही दरअसल पाने में हैं समथॆ श्रीराम का लगाव।।
राम-राम जपन जो करता निरन्तर सहज निष्काम।
पाता वही अन्ततः सगुन-निरगुन,श्रीराम का धाम।।

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