Sunday, 23 March 2014

सूरज नए प्रभात का

सुना ही नहीं
देखा भी होगा, तुमने
हमारे ही नहीं
बल्कि, हम सबके
- दुनिया के
अतीत , वर्तमान से
कि दुःख की पहाड़ियो  पर
चढ़ कर ही दीखता है
"सूरज" -
सत्यम, शिवम्, सुंदरम की
लहलहाती आभा का
जिससे फूटता है - अनुराग
सेवा, शक्ति, ज्ञान
जैसे सदगुड़ों का ।
हम समझते हैं
चढ़ना, बढ़ना
सरल कभी नहीं होता
लेकिन ज़रा सोचो
रुक कर, गिर कर
हताश होकर
न चढ़ने की कसम खाना
क्या कोढ़ न होगा
जननी पर -
जिसने जन्म दिया है
और जिसने छाती पर
हमारे भरी भरकम
पावों को रखने दिया है
साँसों कि खुश्बू
फैलाने के लिए
अनन्त तक
फिर तुम्हारे पास तो
एक "महान आत्मा" है
विशाल ऊर्जा की
जिसे तुमने अपने
हाथ पैर या दिमाग
जिससे सम्भव हो
जितनी सम्भव हो
देते रहनी है
और और ऊर्जा
जिससे वह ले चले
पहाड़ी कि चोटी तक
तुम सबको दिखाने
सूरज नए प्रभात का ।

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