Monday, 25 July 2022

435:गजल

दूसरों की खामियों से भला क्यों हो हमें वास्ता।
दिखाता हो जब हजार धब्बे हमें अपना आईना।।

बरसाती पहना के वो शहर भर हमें चक्कर लगवाता।
उमड़ता-घुमड़ता ये ढीठ बादल बहुत हमको छकाता।।  

जुनून हो जिसने पाला कुछ बड़ा कर गुजरने का।
समंदर,पहाड़,दरिया को वही धत्ता बता सकता।।

मंजिल पर मुकद्दस*पहुंचना इतना आसान नहीं।*पवित्र 
लहू को बना कर पसीना बनाना पड़ता है रास्ता।।

हजार मन्नतों से भी दिल उसका अब तलक पसीजा नहीं।
"उस्ताद" जन्मों से तभी तो हो रहा अपना आना-जाना।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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