Friday, 8 July 2022

429:गजल

कौन जाने दाना-पानी किसका,कब तलक कहाँ बदा है। नजूमी*भी नहीं जानता सब कुछ,यही तो नसीबे अदा है।। *ज्योतिष 

हमारे तुम्हारे चाहने से,बदलता नहीं है फैसला कुदरत का। 
नफ़्सानियत* छुड़ाने का बस, ये तो खुदा का एक कायदा है।।*आसक्ति

है फसाना बस कुछ देर का यहाँ,नहीं तेरा-मेरा जरा भी।
लब्बोलुआब है यही कायनाते इल्म,जो हमें समझना है।। 

रंग जुदा-जुदा हैं बोली,खान-पान,मजहब के हमारे। मिलकर चलें सब साथ-साथ,यही वक्त की सदा*है।।*आवाज 

दिखाए जो भी रंग खुदा,बस उसे दिल से कबूल कर लीजिए। 
"उस्ताद" सौ फ़ीसदी असल उसमें ही आपका फायदा है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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