Saturday, 2 July 2022

426: गजल

मांगा था तुमको खुदा से हमने दुआओं में।
मिले तो सही मगर तुम महज ख़्वाबों में।।

महक रही है आज भी ये कायनात सारी हुजूर।
घोला है तुमने प्यार का रंग जबसे फिजाओं में।।

यूं ही नहीं हैं सारे ग़ाफ़िल* तेरे अन्दाज से।*बेसुध 
मिजाज देखे हैं हर घड़ी बदलते घटाओं में।।

तपती रेत में क्यों न हो नक्शे-पा की तलाश तुम्हारे। 
मिल जाओ तो खिलते हैं गुल हर तरफ निगाहों में।।

हो जब तलक तुम पतवार थामे "उस्ताद" जी। 
डगमगायेगी कहाँ कश्तियां हमारी तूफानों में।।

नलिनतारकेश "उस्ताद"

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