Saturday, 23 July 2022

433:गजल

हम भी वही हैं यारब तुम भी वही रहे हो।
नहीं अब निगाहें पर चार करते दिखे हो।।

निभाने का हर सांस जो वादा था तुम्हारा। 
हर कदम बस अब तो कतरा के चल रहे हो।।

ठीक है खता हुई हमसे तहे दिल से मानते हैं।
लुटाने में फिर वही प्यार क्यों गुरेज़ करते हो।।

आफताब बन कर ताज सर पर चमके ये दुआ है।
हमसाए से फिर भला तुम क्यों रिश्ता भुलाते हो।

फासले बढ़ गए हैं मगर इतने भी नहीं "उस्ताद"।
चाहो तो अब भी सारी तल्ख़ियां मिटा सकते हो।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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