Friday, 1 July 2022

425: गजल

मुँह खोलिए आप पूरे एहतियात से मगर मजबूरी में।
तिल का ताड़ बनाने को तैयार हैं सब सुप्रीमेसी में।।

माना कि घर आपके ही वो बहैसियत किराएदार रह रहे। 
दिखाइएगा न भूल कर भी ताव ज्यादा अपनी हेकड़ी में।।

डरे हुए,सताए,मजलूम इन लोगों के चेहरे तो जरा देखिए।
खुदा की शान के खातिर करते हैं बस कत्ल बेगुनाही में। 

जमा-पूंजी कुछ है नहीं पल्ले में मगर हौंसला तो देखिए।
मौज  ले ली सारी दुनिया की अपन ने महज उधारी में।।

बेसहारा है सच में जरूर लोगों की नजरों में हम हुजूर। बिंदास रहते मगर आए हैं अपने"उस्ताद" की शागिर्दी में।।

नलिनतारकेश "उस्ताद "

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