Monday, 18 July 2022

430:गजल

रूठ कर बताओ तो जरा कहाँ छुप गए तुम। 
भिगोने ये खुला आंचल मेरा नहीं आए तुम।।

गर्म थपेड़े चौखट में खड़े होने से रोकते हैं।
यूँ सुना ऐरे-गैरों से तो खूब बतियाते तुम।।

आषाढ से खड़े बेकल* लो अब सावन भी आ गया।*बेचैन 
मगर यार दर्द चाक-ए-गिरेबां* कहाँ समझते तुम।।*गर्दन कटने का 

एतबार तुम पर शायद ज्यादा कर लिया था हमने।
मरहम ए खंजर दोस्ती का आकर घोपते रहे तुम।।

सूरज,चांद,तारे,नदी,आसमां,परिन्दे शोख सारे।
काश "उस्ताद" कदर इनकी भी सीख जाते तुम।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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