Thursday, 7 July 2022

428: गजल काले मेघा पानी दे

काले मेघा पानी दे
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उमड़-घुमड़ तो हर जगह तुम बरसते रहे हो।
जाने क्यों चौखट से हमारी ही बचते चले हो।।

दरख्त हरे-भरे भरे सारे,झुलस के ठूंठ रह गए हैं।
आंखों को बंद करके जाने कहाँ तुम डोलते हो।।

ये तल्ख चुभती हवाएं चीरती है सीना सन-सन।
गजब हो यार तुम अभी भी हंसी-ठट्टे में लगे हो।।

गीत गाएं कैसे गला सूखा दरदरा रहा हमारा।
मौज में आकर तुम हमारा इम्तहान ले रहे हो।।

"उस्ताद" इतना भी कसम से न तुम भाव खाओ।
सजदे में हैं हम तुम्हारे कहो और क्या चाहते हो।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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