Sunday, 31 July 2022

438:गजल

बड़ी देर में वो हैं तशरीफ लाए जनाब।
मगर चलो इत्मीनान से पधारे जनाब।।

एक लंबे दौर से पथरा गई थी आंखें। 
बन के खुशगवार मौसम छाए जनाब।।

कभी उमस कभी चिलचिलाती धूप सी तपन।
चारागर से आंखिर दर्द मिटाने आए जनाब।।

न आए थे तो भी ख्याल में तो हर समय थे।
हकीकत में डर है अब कहीं न जाएं जनाब।।

"उस्ताद" क्या कहे कितना लिखे शान में उनकी।
 नक्शे-पा हुजूर के हम बिना मोल बिक गए जनाब।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 30 July 2022

437:गजल

बारिश में भीगने का लुत्फ भी गजब की अदा है।
बगैर भीग के मगर भीग जाना ये तो अलहदा है।।

पोर-पोर रिस कर जब जिस्म को छूती हैं बूदें हमें।  
लिखना नहीं उसे तो महसूस करना ही कायदा है।।

काले हिनहिनाते बादल जब उफन के बरसते हों।
कूद के तभी तो घटाओं को चूमने का फायदा है।।

बिजली कड़के और होती हो धुआंधार बरखा।
दीगर उतारना सब शर्म ओ लिहाज का पर्दा है।।

जुगलबन्दी में जब लग जाता है सम बराबर से।
रूहानी सुकून मिलना तो सौ फ़ीसदी बदा है।।
 
कुदरत संग डूब कर दिलों को अपने धड़काते रहना।  
जीने का जिंदगी "उस्ताद" यही तो खरा सौदा है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 29 July 2022

436: गजल

कश्ती में उसे लेकर डूबना चाहता था। 
नया एक जहां मैं बसाना चाहता था।।

मर कर भी हो क्यों हम एक-दूजे से जुदा।
अलहदा एक मोहब्बत करना चाहता था।।

उसमें मुझमें फर्क नहीं था रत्ती भर का।
दरअसल यही तो मैं जताना चाहता था।।

दूरियां ये दुश्मनी में तो आती नहीं यार कभी भी।
प्यार में ही क्यों होता है ऐसा जानना चाहता था।।

सारे जहां में बस रहे सदा अमन ओ चैन का रंग।
दिले धड़कन "उस्ताद" यही सुनाना चाहता था।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 25 July 2022

435:गजल

दूसरों की खामियों से भला क्यों हो हमें वास्ता।
दिखाता हो जब हजार धब्बे हमें अपना आईना।।

बरसाती पहना के वो शहर भर हमें चक्कर लगवाता।
उमड़ता-घुमड़ता ये ढीठ बादल बहुत हमको छकाता।।  

जुनून हो जिसने पाला कुछ बड़ा कर गुजरने का।
समंदर,पहाड़,दरिया को वही धत्ता बता सकता।।

मंजिल पर मुकद्दस*पहुंचना इतना आसान नहीं।*पवित्र 
लहू को बना कर पसीना बनाना पड़ता है रास्ता।।

हजार मन्नतों से भी दिल उसका अब तलक पसीजा नहीं।
"उस्ताद" जन्मों से तभी तो हो रहा अपना आना-जाना।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 24 July 2022

434:गजल

दर्दे सैलाब जब गहरे भभकता बहुत है।
ग़ज़ल ए अशआर तब चमकता बहुत है।।

पता हैं सबको दर्द और जिंदगी के गहरे रिश्ते। 
मगर फिर भी गजब ये ख्वाब बुनता बहुत है।।

कंक्रीट के जंगल में दड़बेनुमा घोंसलों से बाहर झांकते। कुलांचे मारते अतीत को आजकल मन तरसता बहुत है।। 

जबसे सुनी है दिल ने तेरे कदमों के आने की आहट।
मान कर ये आहट है तेरी कसम से धड़कता बहुत है।।

जिस गली से न गुजरने की ताकीद हो जमाने की।
वहीं से जाने की जिद "उस्ताद" पकड़ता बहुत है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Saturday, 23 July 2022

433:गजल

हम भी वही हैं यारब तुम भी वही रहे हो।
नहीं अब निगाहें पर चार करते दिखे हो।।

निभाने का हर सांस जो वादा था तुम्हारा। 
हर कदम बस अब तो कतरा के चल रहे हो।।

ठीक है खता हुई हमसे तहे दिल से मानते हैं।
लुटाने में फिर वही प्यार क्यों गुरेज़ करते हो।।

आफताब बन कर ताज सर पर चमके ये दुआ है।
हमसाए से फिर भला तुम क्यों रिश्ता भुलाते हो।

फासले बढ़ गए हैं मगर इतने भी नहीं "उस्ताद"।
चाहो तो अब भी सारी तल्ख़ियां मिटा सकते हो।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 21 July 2022

432: गजल

हर तरफ जलवा ए यार ही दिखाई देता है।
सुबह ओ शाम चर्चा तेरा ही सुनाई देता है।।

मुंतज़िर* हूं तेरे फैसले का एक उम्र से।*प्रतीक्षारत 
तू टाल हर बार मेरी सुनवाई देता है।।

जो न शिद्दत से याद कर पाऊं कभी भूल से। 
याद दिलाने मुझे तू लगातार हिचकी देता है।।

नापाक,नालायक जैसा कुछ भी तो नहीं तेरी नजरों में।
जब चाहे,जैसे चाहे,उसपर रहमतों की झड़ी देता है।।

समझ में आते नहीं "उस्ताद" ये तेरे अजूबे कसम से। 
हां कभी खुद ही बेवजह खोल राज-ए-कलाई देता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 20 July 2022

431: गजल

मुद्दतों बाद हुई बरसात का चलो लुत्फ यूँ  उठा लें।
आओ होठों से गर्मागर्म चाय की चुस्की लगा लें।।
 
एक ही बौछार में मौसम लो कितना बदल गया। 
जो आओ यार करीब तो सारे फासले मिटा लें।। 

हवाएं शोख हो गुनगुना रही हैं जो आज कानों में।
दामन में अपने वही गीत चलो कुछ हम भी भुना लें।।
 
आरजूएं जो रह गई वो भला क्योंकर दफन रहें भीतर। 
पुराने जो रह गए हैं वो आज हम सारे हिसाब चुका लें।

बमुश्किल मन्नतों से हसीं मौसम आज की शाम आया है। निकालो तो "उस्ताद" साज सारे थोड़ा महफिल सजा लें।।

 नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 18 July 2022

430:गजल

रूठ कर बताओ तो जरा कहाँ छुप गए तुम। 
भिगोने ये खुला आंचल मेरा नहीं आए तुम।।

गर्म थपेड़े चौखट में खड़े होने से रोकते हैं।
यूँ सुना ऐरे-गैरों से तो खूब बतियाते तुम।।

आषाढ से खड़े बेकल* लो अब सावन भी आ गया।*बेचैन 
मगर यार दर्द चाक-ए-गिरेबां* कहाँ समझते तुम।।*गर्दन कटने का 

एतबार तुम पर शायद ज्यादा कर लिया था हमने।
मरहम ए खंजर दोस्ती का आकर घोपते रहे तुम।।

सूरज,चांद,तारे,नदी,आसमां,परिन्दे शोख सारे।
काश "उस्ताद" कदर इनकी भी सीख जाते तुम।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 8 July 2022

429:गजल

कौन जाने दाना-पानी किसका,कब तलक कहाँ बदा है। नजूमी*भी नहीं जानता सब कुछ,यही तो नसीबे अदा है।। *ज्योतिष 

हमारे तुम्हारे चाहने से,बदलता नहीं है फैसला कुदरत का। 
नफ़्सानियत* छुड़ाने का बस, ये तो खुदा का एक कायदा है।।*आसक्ति

है फसाना बस कुछ देर का यहाँ,नहीं तेरा-मेरा जरा भी।
लब्बोलुआब है यही कायनाते इल्म,जो हमें समझना है।। 

रंग जुदा-जुदा हैं बोली,खान-पान,मजहब के हमारे। मिलकर चलें सब साथ-साथ,यही वक्त की सदा*है।।*आवाज 

दिखाए जो भी रंग खुदा,बस उसे दिल से कबूल कर लीजिए। 
"उस्ताद" सौ फ़ीसदी असल उसमें ही आपका फायदा है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 7 July 2022

428: गजल काले मेघा पानी दे

काले मेघा पानी दे
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उमड़-घुमड़ तो हर जगह तुम बरसते रहे हो।
जाने क्यों चौखट से हमारी ही बचते चले हो।।

दरख्त हरे-भरे भरे सारे,झुलस के ठूंठ रह गए हैं।
आंखों को बंद करके जाने कहाँ तुम डोलते हो।।

ये तल्ख चुभती हवाएं चीरती है सीना सन-सन।
गजब हो यार तुम अभी भी हंसी-ठट्टे में लगे हो।।

गीत गाएं कैसे गला सूखा दरदरा रहा हमारा।
मौज में आकर तुम हमारा इम्तहान ले रहे हो।।

"उस्ताद" इतना भी कसम से न तुम भाव खाओ।
सजदे में हैं हम तुम्हारे कहो और क्या चाहते हो।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 4 July 2022

427:गजल

मौसम तो बेरौनकीन है,मगर दिल अपना भीगा पड़ा है।
मुत्तसिल* निगाहों से उसने अपनी,जब से हमें देखा है।।*लगातार 

गर्म थपेड़े लू के छूते हैं,महक बहारों की लिए अब तो।
जनाब मानो न चाहे,यकज़बा*प्यार में ऐसा ही होता है।।* सच्चे

तितलियां रंग बिरंगी,परिंदे चहचहाते मिल रहे हर तरफ। जबकि वो तो यार अभी,दो कदम ही मेरे साथ चला है।।

क्या खूब लुत्फे नशा,जेहन में हमारे आज छाया है।
देखा जो आईना,वो अक्स तो उसका ही दिखाता है।।

किसको उम्मीद थी कि राहे जिंदगी ये मुकाम आएगा। रहमोकरम "उस्ताद" का,जो उसका पैगाम आया है।।

नलिनतारकेश "उस्ताद "

Saturday, 2 July 2022

426: गजल

मांगा था तुमको खुदा से हमने दुआओं में।
मिले तो सही मगर तुम महज ख़्वाबों में।।

महक रही है आज भी ये कायनात सारी हुजूर।
घोला है तुमने प्यार का रंग जबसे फिजाओं में।।

यूं ही नहीं हैं सारे ग़ाफ़िल* तेरे अन्दाज से।*बेसुध 
मिजाज देखे हैं हर घड़ी बदलते घटाओं में।।

तपती रेत में क्यों न हो नक्शे-पा की तलाश तुम्हारे। 
मिल जाओ तो खिलते हैं गुल हर तरफ निगाहों में।।

हो जब तलक तुम पतवार थामे "उस्ताद" जी। 
डगमगायेगी कहाँ कश्तियां हमारी तूफानों में।।

नलिनतारकेश "उस्ताद"

Friday, 1 July 2022

425: गजल

मुँह खोलिए आप पूरे एहतियात से मगर मजबूरी में।
तिल का ताड़ बनाने को तैयार हैं सब सुप्रीमेसी में।।

माना कि घर आपके ही वो बहैसियत किराएदार रह रहे। 
दिखाइएगा न भूल कर भी ताव ज्यादा अपनी हेकड़ी में।।

डरे हुए,सताए,मजलूम इन लोगों के चेहरे तो जरा देखिए।
खुदा की शान के खातिर करते हैं बस कत्ल बेगुनाही में। 

जमा-पूंजी कुछ है नहीं पल्ले में मगर हौंसला तो देखिए।
मौज  ले ली सारी दुनिया की अपन ने महज उधारी में।।

बेसहारा है सच में जरूर लोगों की नजरों में हम हुजूर। बिंदास रहते मगर आए हैं अपने"उस्ताद" की शागिर्दी में।।

नलिनतारकेश "उस्ताद "