Thursday, 19 August 2021

ज्योतिष पर संक्षिप्त चर्चा- यद् पिण्डे तद् ब्रह्मांडे

ज्योतिष पर संक्षिप्त चर्चा : यद् पिण्डे तद् ब्रम्हांडे
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ज्योतिष जैसा सर्वविदित है एक विशिष्ट विज्ञान है जिसे अधिकांश लोग अब इसके वास्तविक रूप में पुनः से मान्यता देने लगे हैं अतः यह अपनी लोकप्रियता के शिखर पर विराजमान होने को प्रस्तुत दिख रहा है।ज्योतिष विद्या का मूल उद्देश्य यही रहा है कि हम ईश्वर कृपा से प्राप्त मानव-देह को उसके उच्चतम लक्ष्य तक न्यूनतम अवरोधों के साथ सहजता से आगे लेकर चल सकें। लेकिन अपने लगभग साढ़े तीन दशकों की इसके साथ की गई यात्रा में मुझे लगा है कि हम दैनिक जीवन की आपाधापी के निवारण हेतु ही इसकी शरण में आते हैं।अर्थात मेरा व्यवसाय क्या/कब होगा?विवाह कैसा होगा?धन-लाभ,मकान,वाहन आदि।बहुत ही विरले मुझे ऐसे मिले हैं जो आध्यात्मिक या सीधे शब्दों में कहें अपने "स्व की वास्तविक संतुष्टि" के लिए जिज्ञासु होते हैं।हम नियमित एक मशीन की तरह घन्टी,शंख बजाकर कुछ पवित्र स्त्रोत,चालीसाओं का पाठ करके ही इतिश्री कर लेते हैं और समझते हैं हमने ईश्वर को भी संतुष्ट कर दिया। जबकि दैनिक जीवन की उपलब्धियों हेतु हम
24×7 अत्यधिक प्रयासरत रहते हैं,जी-तोड़ मेहनत करते हैं।
इसके साथ ही आजकल एक अन्य ट्रेंड भी इस विधा में देखने में आ रहा है और वह है "नवग्रहों के सर्वांग उपचार का  आकर्षण"। इसमें लोगों की प्रायः धारणा रहती है कि वह प्रत्येक ग्रह को अपने अनुकूल कर सकते हैं और फिर हर प्रकार से सुख-सुविधा युक्त,भोग-विलास पूर्ण जीवन यापन कर सकेंगे। कुछ महीन ज्योतिषी ऐसे लोगों की इस अवधारणा को पुष्ट करते हुए अपना उल्लू सीधा करते हुए देखे जा सकते हैं।और इधर तो एक दो दशकों से यह बाजार बहुत विकसित हुआ है।अपने क्लाइंट के हर संभव,असंभव कार्य को कुछ छोटे-मोटे उपचार/टोटकों/ वास्तु आदि से नियंत्रित करने का दम भरते हुए सफलता की गारंटी देना और असफल होने पर भी कुछ अपनी चूक स्वीकार न कर नाटकीय रूप में किसी अन्य पर दोष मढ़ना या सफाई देना आजकल बहुत दिख रहा है।सांसारिक कामनाओं से पीड़ित जिज्ञासु येन-केन प्रकारेण सिद्धि चाहता है।उसे ग्रहों की आंतरिक स्थिति/पृष्ठभूमि को समझने का होश या समय ही कहाँ ? ऐसे में स्वाभाविक रूप से ज्योतिष विद्या के आधारभूत तत्व उनकी वैज्ञानिकता, उसका जातक के समग्र जीवन पर पड़ने वाले असर की सटीक व्याख्या को समझने की गंभीरता या सब्र दिखाई दे भी तो दिखे कैसे?
अपने इस संक्षिप्त लेख को जिसमें कई अंतर्निहित प्रश्न हैं एक उदाहरण के साथ समाप्त करना चाहूंगा क्योंकि अन्यथा तो यह एक डिटेल और दीर्घकालीन प्रक्रिया होगी, ज्योतिष के महासागर में।यदि समय और मन की सुईयां एक साथ फिर हुईं (जिसका प्रयास रहेगा)तो कुछ ऐसे प्रश्नों के पत्थरों को जोड़कर सेतु बनाने की प्रक्रिया चलेगी।जिससे एक संकरी ही सही पगडंडी कुछ दूर तक जाने का हौसला दे सके।अस्तु।
तो उदाहरण है कि यदि किसी व्यक्ति के सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु आदि नवग्रहों में से कोई ग्रह अनिष्टकारी होने का संकेत देते हैं तो हम उस ग्रह से संबंधित दान, जाप, पूजन,हवन आदि करते हैं। एक रूप में यह प्रक्रिया ठीक भी है और प्रायः इसके अच्छे परिणाम देखने को भी मिलते हैं।लेकिन मुझे लगता है हमें और गहरे जाने/पैठने की जरूरत है। ग्रहों के साथ बेहतर तादात्म्य बैठा कर अपने समग्र व्यक्तित्व का पूरी स्पष्टता व निर्भीकता के साथ आकलन की आवश्यकता है। जिससे हम एक स्वस्थ,सफल एवं पूर्ण समर्पित जीवन अपने उच्च लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निकाल सकें। हमारे शास्त्रों में बहुत स्पष्टता से एक छोटे से वाक्य में कहा है: "यद् पिण्डे तद् ब्रह्मांडे"।अर्थात हम ब्रह्मांड के अंग हैं और ब्रह्मांड हमारे ही भीतर समाहित है। तो नवग्रह इससे छूटे हुए कहाँ। तो यदि हमें अपने ग्रहों को ठीक करना हो तो उनकी ऊर्जा को संतुलित रूप में उपयोग करना होगा (अपनी शक्ति,सामर्थ्य अनुसार )। इसके लिए हमें ग्रहों के चरित्र को बारीकी से समझना होगा।फिर ग्रह ही अकेले क्यों?राशि,नक्षत्र,तिथि,पक्ष (शुक्ल/ कृष्ण)सभी को अलग-अलग और उनके मिश्रित प्रभाव के साथ भी पढ़ना होगा,तभी हम कुछ ज्योतिष के महासागर से माणिक,मुक्ता आदि बहुमूल्य रत्न निकाल पाएंगे। वरना तो किनारे खड़े हो एक-आद लहरों का ही स्पर्श पा सकेंगे।यह जल्दबाजी का सौदा नहीं है इस सबके लिए गहरे धैर्य और विश्वास की जरूरत है।जैसा सांई की प्रार्थना का मूल भाव भी है।श्रद्धा-सबुरी।वैसा ही कुछ-कुछ।
अब जैसे हम मान लें कि हमारी जन्मपत्रिका में सूर्य ग्रह (किन्हीं कारणों से) पीड़ित है तो बहुत स्थूल तौर पर समझें तो सूर्य ग्रह हमारी आत्मा,पिता,गौरव/अभिमान(पीड़ित अवस्था में अभिमान),नेत्र विशेषतः दायीं जैसी कुछ बातों का प्रतिनिधित्व करता है तो ऐसे में यदि हम दान,जाप आदि करते हैं तो ठीक है। लेकिन यदि हम अपने पिता के साथ संबंधों में किसी प्रकार का दुराग्रह रखते हैं या फिर  अपने अभिमान को पालते हैं तो सूर्यदेव आपके प्रति उतने अधिक कल्याणकारी नहीं हो सकते।फिर चाहे आप जितना ब्राह्मण से जप,तप, करवा लें या दान देते रहें।इसका सीधा सा तात्पर्य यह है कि हमें अपने ग्रहों को पुष्ट व शुभ फलदायक बनाने हेतु उनकी मूलभूत प्रकृति के अनुरूप अपनी जीवनशैली को भी सुधारना होगा तभी बात बनेगी अन्यथा नहीं।यही सर्वाधिक ध्यान देने योग्य बात है। कम्रशः

नोट : एक लम्बे अन्तराल पश्चात पुनः ज्योतिष विषय पर लिख  रहा हूँ यदि पाठकों को अच्छा लगेगा तो आगे भी लिखने हेतु ईश्वर की कृपा और आपका स्नेह चाहूंगा।धन्यवाद।
@नलिनतारकेश
astrokavitarkesh.blogspot.com

Wednesday, 18 August 2021

381: गजल- दिल बिछाते चलेंगे।

किया है प्यार हमने तो अंजाम भी भुगतेंगे।
खुशी-खुशी हम लाख तेरे नखरे भी सहेंगे।।

दूर से ही हवाओं में घुलकर आती है महक तेरी।
देगा जो आंचल थामने भला क्यों नहीं महकेंगे।।

जुल्फों का घना साया जिसके मुंतज़िर है हम।
मिले जो ख्वाब में भी खुशी से फूल जाएंगे।।

नूरानी आँखों में पड़े हैं डोरे इंद्रधनुषी तेरी।
इशारे पर तो बस एक इनके नाचते फिरेंगे।।

"उस्ताद" लेंगे हुजूर शागिर्दी आपकी।
कदम दर कदम हम दिल बिछाते चलेंगे।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 17 August 2021

380: गजल- इश्क है तुझे मुझसे

तुझे देखकर मैं ग़ज़ल लिखूं।
तुझमें ही या गहरे डूब जाऊं।।

बता तो सही ए मेरे खुदा।
जिम्मा अब ये तुझपे छोड़ूं।।

आती है महक अलहदा।
जिस ओर भी तुझे देखूं।।

फासला न रहे कोई अब।
हर रोज यही दुआ  करूं।।

हर तरफ गुलजार तेरा जलवा।
हो इजाजत तो सबको बता दूं।।

होते रास्ते सबके जुदा-जुदा मगर।
मंजिल तो एक तुझको ही जानूं।।

जान गया हूं इश्क है तुझे मुझसे।
"उस्ताद" बस यही सुनना चाहूं।।

@नलिनतारकेश

 

Monday, 16 August 2021

कविता : स्वतन्त्रता की हीरक जयन्ती

 
स्वतंत्रता की हीरक जयंती का श्रीगणेश मंगलमय हो रहा।
तुमुल सप्तस्वर जयघोष,वंदन,मातृभूमि का अपनी हो रहा।।

अधरों पर है छाई मृदुल-मुस्कान पर आँखें भी हैं भीगी हमारी।
एक ओर अप्रतिम उल्लास तो वही शहीदों का स्मरण हो रहा।।
 
रामराज्य परिकल्पना के इंद्रधनुषी ताने-बाने बुने जा रहे।
नव-सृजन का अब सिलसिला निरंतर गतिमान हो रहा।।

तिमिर घटाटोप गहन जब राहु सा ग्रसने हमें जा रहा था।
कुछ पुरुषार्थ कुछ देवयोग नव-उषा का पदार्पण हो रहा।।

अतः आओ राष्ट्र निर्माण का नव-संकल्प हिलमिल आज लें। जब विधाता भी मार्ग प्रशस्त करने को हमारे आतुर हो रहा।।

जाति-धर्म,ऊॅच-नीच के भेदभाव मिटा उर से समस्त अपने।
दिखा दें कुशल नेतृत्व भारत हमारा जगद्गुरु प्रस्तुत हो रहा।।

@नलिनतारकेश 

Saturday, 14 August 2021

379: गजल- तवज्जो कोई देता नहीं

दर्द मेरे तन्हा छोड़ कर तू मुझको कहीं जाना नहीं।
तब तलक जब तक तू ही बन जाए मेरी दवा नहीं।।

यूँ तो होश मुझको अब कतई कुछ रहता नहीं सच में।
हो एहसासे बेहोशी भी मगर ये यार मैं हूँ चाहता नहीं।।

आकाश के सितारे पढ़ नजूमी* बताते तो हैं मुस्तकबिल।
बहार है या छाई पतझड़ फर्क मुझे अब तो पड़ता नहीं।। 
*ज्योतिषाचार्य 

हलक में अटक जाती हैं कभी-कभी अपनी ही नादानियां।
उगलते और ना ही निगलते हमसे तब कतई बनता नहीं।।
 
कूवत भी कुछ तो होनी चाहिए असर तब दिखता है जनाब।
वर्ना नाम रखने से महज "उस्ताद" तवज्जो कोई देता नहीं।।

@नलिनतारकेश

Friday, 13 August 2021

378:गजल-बलैय्याॅ हैं लेते

हर तरफ चर्चा देता है सुनाई जलवों का बस तेरे।
निगाह एक इस तरफ भी डाल दे जरा प्रीतम मेरे।।

चमकता है हर उस शख्स का मुस्तकबिल यहाँ पर।
लेता है हर दिन जो तेरा नाम तहेदिल शाम-सवेरे।।

बहती है दरिया,गुलशन के साए बंजर जमीन भी।
हाथ रख दे माथे अगर जो तू किसी के भी ऐरे-गैरे।।

तमन्ना ही रह जाती है अक्सर ऑखिरी सांस तक। 
काश कभी तू आकर उसके सर अपना हाथ फेरे।।

करिश्माई  है गजब तू और तेरी ये कायनाते जादूगरी। 
उस्तादों के उस्ताद तभी तो तेरी हैं बलैय्याॅ लेते।।

@नलिनतारकेश  

Thursday, 12 August 2021

377:गजल- याद तुम्हारी

ये बदली उदासी की छा रही जेहन में।
याद तुम्हारी हमें जो आ गयी जेहन में।।

देखना अब फिर बरसात होगी जेहन में।
हिचकोले खाएगी कश्ती हमारी जेहन में।।

फासलों से फर्क वैसे पड़ता नहीं है कुछ भी।
बात हमने समझायी खुद को यही जेहन में।।

आँखों से बरसे मोती तो,हार हम पिरोते रहे।
देखो न बन जाए शायद माला कहीं जेहन में।।

दरिया का पानी तो वो बह गया बहुत अरसा हुआ।
कब तक जन्मों पुरानी कहानी दोहरायेगी जेहन में।। 

"उस्ताद" खारा समंदर ये फैला है दूर तलक देखो।
लहरें आकर अक्सर भिगो हमें हैं जाती जेहन में।।

@नलिनतारकेश

Wednesday, 11 August 2021

376:गजल- इनायते नजर किया कीजिए

बेवजह की है कवायद पर किया कीजिए।
प्यार हो ना हो इजहार मगर किया कीजिए।।
 
चांद छूने में जमीं छूट जाती है अक्सर पाँव से। 
मगर हर हाल जतन में न कसर किया कीजिए।।

गमों का सैलाब हदें तोड़ आता दिखे तो भी। 
धार दे अपने हौंसले बेहतर किया कीजिए।।

यूँ ही तंग हो रहे हैं जिंदगी के रास्ते आजकल।
है कहाँ?किस हाल?खबर ये तो किया कीजिए।।

तल्खियां,तोहमतें बेवजह की चिपट जाती हैं गले से।
कुछ वक्त मगर ऐसे हालात भी गुजर किया कीजिए।।

काबिल तो नहीं आपके पाक दामन सजदे को नाचीज ये।
कुछ  तो "उस्ताद" मगर इनायते नजर किया कीजिए।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 10 August 2021

कविता: प्रीतम प्रभु मेरे

व्यर्थ आ-जा रही,श्वास-प्रश्वास हर घड़ी बिन तेरे।
छुपा है कहाँ चितचोर,निष्ठुर जरा तू बता दे मेरे।।

घनघोर घटाटोप अंधकार छाया,जब अन्तःकरण मेरे।
समस्त ब्रह्मांड प्रकाशक,तू है क्यों खड़ा पृष्ठभाग मेरे।।

विरुदावली गाते हैं नित्य भक्त,अनंत काल से तेरे।
श्रवण कर उनको ही कुछ,याचक बना हूँ द्वार तेरे।।

आजा अब न कर विलंब क्षण भर भी,प्रीतम-प्रभु मेरे।
विकल,दीन-हीन हूँ मिटाता क्यों नहीं,आकर पाप मेरे।।

भ्रमर बन,श्री नलिन चरण मकरंद पान करूं,नित्य मैं तेरे।
कृपा की विशिष्ट सामर्थ्य से,पाँऊ दर्शन अब,सदा मैं तेरे।।

@नलिनतारकेश 




Monday, 9 August 2021

375- गजल- पीतेहैं उस्ताद

बदल रहे हैं वो मिजाज अपने आहिस्ता-आहिस्ता।
कतरा के चलते हैं अब हमसे आहिस्ता-आहिस्ता।।

खिले गुल से मिलते थे जो कभी हर मोड़ हमको।
लबे पंखुरी समेटते दिख रहे आहिस्ता-आहिस्ता।।

जमाने की नई हवा लगती दिख रही है अब तो सबको।
बुजुर्गों से भी बदजुबानी करने लगे आहिस्ता-आहिस्ता।।

सावन में बादलों के मिजाज अलहदा अपना रंग दिखाते।
कहीं मूसलाधार तो कहीं बरसते बड़ेआहिस्ता-आहिस्ता।।

जाम पर जाम चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती कभी भी।
निगाहों से "उस्ताद" सांवली पीते आहिस्ता-आहिस्ता।। 

@नलिनतारकेश 

Sunday, 8 August 2021

कविता:स्वर्णिम नवयुग की पदचाप

स्वर्णिम नवयुग की निकट अब पदचाप सुनाई दे रही। 
रचनात्मकता भरे दृढ नव-सृजन की नींव भरी जा रही।।

यद्यपि तिमिराच्छादित है दिख रहा आज भी गगन सारा। संकल्पित हृदय किन्तु विश्वासकी एक किरण दिख रही।।
 
महामारी का लोमहर्षक परिणाम दावानल सा ग्रस रहा। विकट परिस्थितियों के विपरीत भी राष्ट्र कीर्ति बढ़ रही।।
 
स्वर्ग सा भूभाग कश्मीर हमारा 370बेड़ियों से मुक्त हुआ। 
वहीं स्त्रियां एकजुट हो हक हेतुअपने प्रतिबद्ध दिख रहीं।

सड़क,बिजली,शौच,आवासकी प्राथमिक आवश्यकताएं।
विकास-परिभाषा केअनुरूप मापदंडों पर खरी उतर रहीं।

राष्ट्र-सेवा में समर्पित रहे हैं तन-मन से जांबाज प्रहरी सदा हमारे।
खेल-खिलाड़ी,युवा स्पंदित इन सबके हौंसलों की पहचान हो रही।।

यूँ तो हैं कुछ स्वार्थी,लंपट,लालची,संपोले अभी आस्तीन में छिपे।
परवाह लेकिन है किसे जब जनता-जनार्दन एकमत हो रही।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 7 August 2021

कविता: हे नाथ!हे प्रभु!

हे नाथ!हे प्रभु!कृपा आप अपनी इतनी कीजिए।
श्रीचरण-नख-भक्ति मंदाकिनी मुझ पर उडेलिए।।

स्नान कर सर्वांग इस परम दिव्य सुधा रसधार से।
मुक्त हो जाऊंगा सदा को जन्म-जन्मों के पाप से।।

सुख,शांति अंतःकरण की शुद्ध तभी मिल पायेगी।
राम-राम बस राम करते उम्र सहज ही कट जाएगी।।

आपके ही फिर भाव में मगन हो झूमुंगा परमानंद में।लौकिक,अलौकिक होगी कहाँ चाह जरा भी चित्त में।।

य॔त्रबद्ध सी जब आपके इशारे पर चलेंगी हरेक इंद्री। कहिए फिर कहाँ रह पायेगी रत्ती भर भी छुद्र वृत्ति।।

नवरंग-भक्ति की सुगंध जब उर-सरोवर मेरा महकयेगी। "नलिन"निर्मल तन-मन की कांति तुझे भी तब लुभायेगी।।

@नलिनतारकेश 

Friday, 6 August 2021

374:गजल-चूमेंगे हर कदम मंजिल

चूमेंगे हर कदम मंजिल नई ये तय जान लीजिए।
लबों पे मुस्कान दिल में जुनून औ जज्बा रखिए।।

रास्ते जिंदगी के आसान नहीं यहाँ किसी के लिए भी।
बस गुजारिश है यही खुद से न कभी भी हार मानिए।।

तकदीर के चलते जो तमगे छाती में लग भी गए तो।
वो सुकूं वो खुशी न देंगे वैसी जो पसीने बहा जीतिए।।

नूर तो एक वही है जो धड़कता है तुझमें,मुझमें यारब।
दिखाई देगा बस जरा मजहबी चश्मे ये अपने उतारिए।।

जो जीतना चाहते हैं दिल अगर हर किसी का आप।
जुबां "उस्ताद" अपनी बेवजह न खोला कीजिए।।

@नलिनतारकेश 

Thursday, 5 August 2021

कविता: सावन में युगल सरकार की लीला

सावन में युगल सरकार की लीला
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लो सावन के बदरा इतराते,झूमते आ गए।
हरे-हरे दरख़्तों की शाख पर झूले आ गए।।

सखियों संग राधा लली जो आए झूलने को। 
श्रीकृष्ण भी ग्वाल-बाल संग मटकते आ गए।।

धमाचौकड़ी तो मचनी तय थी अब बाग में भक्तों।
नजारे ये लूटने पशु-पक्षी भी बहुतायत में आ गए।।

श्यामसुंदर प्रभु तो सदा के निराले-रंगीले हैं हमारे।
अधरों पर धरी बाँसुरी तो सुर-सुरीले सारे आ गए।।

राग-रागिनीयों ने अद्भुत बड़ा ही माहौल रच दिया।
देव,यक्ष,किन्नर श्रवणानंद लेने प्रफुल्लित आ गए।।

मंत्रमुग्ध,मदहोश,मृगनैनी राधाजी हुईं सांवरे को देखके। 
प्रीत का बिछाते जाल जब छबीले बड़े सरकार आ गए।। 

बंसी और नूपुर की चली जुगलबंदी उल्लासमई रात भर। सुध-बुध बिसारे सभी पौ-फटी तो"नलिन"होश में आ गए।

@नलिनतारकेश 

Wednesday, 4 August 2021

373:गजल- खिरामां खिरामां

चल रही अपनी जिंदगी खिरामां खिरामां*। *मस्ती भरी चाल
मंजिल भी मिलेगी कभी खिरामां-खिरामां।।

मौसम हुआ आज देखो कितना सुहाना।
हवा भी है मस्त बहती खिरामां-खिरामां।। 

इश्के बीमारी अभी तो जुम्मे-जुम्मे लगी है।
बढ़ेगी अभी और हमारी खिरामां- खिरामां।। 

बरसने लगे हैं आज उमड़कर सावन के बदरा।
लगा काजल जब वो निकली खिरामां-खिरामां।।

हुई मुलाकात फकत "उस्ताद"दो-चार बार ही।
चढ़ेगा रंग प्यार का इंद्रधनुषी खिरामां-खिरामां।।


@नलिनतारकेश

Tuesday, 3 August 2021

372:गजल-झण्डे गाड़ती हैं बेटियाँ

पेशे खिदमत है हिन्दी कहावतों में ढली एक गजल।
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लो सावन में अंधे हो गए सुप्रीम हुजूर हमारे।
अहद* है दिखे रंगीन हर तरफ बस हरे नजारे।।*संकल्प 

सूप बोले तो बोले अब तो छन्नियां भी हैं बोलती।
हांडी ये अपनी काठ की चढ़ाना चाहते हैं बिचारे।।

लुटेरे उच्चके नेता हैं सब चट्टे-बट्टे एक थैली के।
दल-दल से हैं इनके रिश्ते चोर-चोर मौसेरे वाले।।

गधे को अंगूरी बाग की समझ होगी कहाँ से कहो तो। बता उसको मगर घोड़ा लगे हैं दौड़ाने में सारे के सारे।।

घर के भेदी ही ढहाते रहे हैं सोने की अयोध्या हमारी। सवाल तो ये है मगर कौन इनकी म्याऊँ की ठौर बांधे।।

हथेली पर जमती नहीं सरसों बगैर बहाए पसीना। मिलाकर हाथ चलना होगा हमको हर हाल प्यारे।।

घर का जोगना न रह जाए कहीं आन-गांव का सिद्ध योगी। 
"उस्ताद" वक्त पर लगे एक टांके भी मुस्तकबिल* जगाते।।*भविष्य 

@नलिनतारकेश

Monday, 2 August 2021

371:गजल- सावन में अंधे सुप्रीम हुजूर हमारे

पेशे खिदमत है हिन्दी कहावतों में ढली एक गजल।
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लो सावन में अंधे हो गए सुप्रीम हुजूर हमारे।
अहद* है दिखे रंगीन हर तरफ बस हरे नजारे।।*संकल्प 

सूप बोले तो बोले अब तो छन्नियां भी हैं बोलती।
हांडी ये अपनी काठ की चढ़ाना चाहते हैं बिचारे।।

लुटेरे उच्चके नेता हैं सब चट्टे-बट्टे एक थैली के।
दल-दल से हैं इनके रिश्ते चोर-चोर मौसेरे वाले।।

गधे को अंगूरी बाग की समझ होगी कहाँ से कहो तो। बता उसको मगर घोड़ा लगे हैं दौड़ाने में सारे के सारे।।

घर के भेदी ही ढहाते रहे हैं सोने की अयोध्या हमारी। सवाल तो ये है मगर कौन इनकी म्याऊँ की ठौर बांधे।।

हथेली पर जमती नहीं सरसों बगैर बहाए पसीना। मिलाकर हाथ चलना होगा हमको हर हाल प्यारे।।

घर का जोगना न रह जाए कहीं आन-गांव का सिद्ध योगी। 
"उस्ताद" वक्त पर लगे एक टांके भी मुस्तकबिल* जगाते।।*भविष्य 

@नलिनतारकेश

Sunday, 1 August 2021

370:गजल --भुला न पायेगा ये शहर हमें

दोस्त मिले तो बहुत ज़िन्दगी के सफर हमें।
तब्दील कब हो गए रकीब* नहीं खबर हमें।।*शत्रु

देखा तो खुद को हमने बहुत बार आईने में।
ओझल रहे मगर अक्स न आया नजर हमें।।

नसीब वाले हैं जिन्हें मिलता यार का प्यार है।
तन्हाई का लेकिन कभी पड़ा नहीं असर हमें।।

बातें छपवाना इश्तहार बना कर कुछ का शगल है।
बहते हैं दरिया के जैसे फरक पड़ता नहीं मगर हमें।।

अभी गुरबतों* के चलते भाव कोई दे न चाहे।*दीन स्थिति
भुला न पायेगा देखना "उस्ताद" ये शहर हमें।।

@नलिनतारकेश