Wednesday, 2 January 2019

गजल-70: नकाब उठाकर

नकाब उठा कर जो चेहरा दिखाया उसने। तसव्वुर को हकीकत से यूं मिलाया उसने।।

नासमझ मुझे तो बस जिस्म की समझ थी मगर।
नूर ए रूहानी आंखों से पिलाया उसने।।

तपते रेगिस्तान में बदहवास सा पड़ा था। नेमत से अपनी मुझे आकर जिलाया उसने।।

दर्द,तकलीफ ठहर कर जब-जब नसीब बन गया।
रोते हुए को बना जिंदादिल हंसाया उसने।।

तकदीर जो खुद की ही न पढ़ सका कभी अपनी।
लकीरों को सबकी फिर उससे बंचवाया उसने।।

जिंदगी के कदम जब कभी बने गर्दिशे सफर। पेंचोखम जुल्फ को"उस्ताद"सुलझाया उसने।।

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