Saturday, 12 January 2019

गजल-80 वो तो समंदर की

वो तो समंदर की महज बात करते हैं।
बनके हम सदा ही समंदर विचरते हैं।।

प्यार के अल्फाज क्या कहीं लिखे मिलते हैं। वो तो पर इश्क का भी फॉर्मूला रटते हैं।।

हवा की मुखबरी*से नादां परेशान क्यों। जज्बात से अक्सर सब यूं ही खेलते हैं।।
*जासूसी

तेरे और मेरे बीच का रिश्ता क्या है।
परवाह है भला क्यों जो लोग पूछते हैं।।

तिश्र्नगी* ये ऐसी नहीं जो दुनिया मिटा सके।*प्यास
समझते हैं तभी तो तुझसे प्यार करते हैं।।

आसां नहीं उसके प्यार में डूब के जीना। "उस्ताद"यहां सब मुझे अब बदचलन कहते हैं।।

@नलिन #उस्ताद।

No comments:

Post a Comment