Thursday, 10 January 2019

गजल-78 नूरे खुदा से

नूरे खुदा से रूबरू हो कहता गजल है।
चांद-सितारों ओ कुदरत वो सुनता गजल है।।

रेशम की ताग से महबूब के किस्से।
चरखे में कातता वो दिखता गजल है।।

मासूमियत,इश्क,नेकी,जुनून सब लेकर।
लफ्जों की ड्रिबलिंग से ढालता गजल है।।

दूब में पड़ी ओस कदमों में जा के ठहरी।
महके जब ऐसा सजदा तो बनता गजल है।।

पूनम की रात हो या अमावस का चांद निकले।
हर दिन करीने से वो बेखौफ सहेजता गजल है।।

गैरों के रंजोगम पर बहुत संजीदा है जो।
चाशनी भरने तभी खुशी की घोलता गजल है।।

जिंदगी का मजा तो असल अब आ रहा है।
गुफ्तगू से जब-जब खुद की बुनता गजल है।।

कहां आबे जमजम कहां ये दोजख का पानी।
करम बड़ा"उस्ताद"उसका जो लिखता गजल है।।

@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment