Friday, 4 January 2019

गजल-72 शमशान वैराग्य

शमशान वैराग्य
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हर पल चिता एक दिल में भी जलती है।
आग अरमानों की जहां धधकती है।।

लो फिर एक और आ गई अर्थी श्मशान में।
मरने वालों की कहां यार कमी रहती है।।

जमाने के साथ ही मरघट भी बदल गया।लोगों को अब यहां खिचरोली*सूझती है।।
*ठिठोली(कुमाऊंनी शब्द)

धुआं-धुआं हर तरफ बस बाकी रह गया। जिंदगी ये नादां महज किवदन्ती है।।

नथुने से एक जान आए दूजे से चली जाए।
खेल कसम से यह क्या अजब-गजब कुदरती है।।

जिस रोशनी में नहाकर सभी पार हो गए।
उम्मीदे लौ वहीं "उस्ताद"को दिखती है।।

@नलिन #उस्ताद

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