Tuesday, 30 October 2018

जाने कितने

जाने कितने अनगिनत तरीकों से,हमें मनाता है वो उम्र भर।
ठोक-पीट,बहला-फुसला, तो कभी सहला- पुचकार कर।

हम भी मगर कम ढीठ तो नहीं,चलते हैं अपने ही पथ पर।
वो भी ऐसे में क्या करे,यूं छोड़ता नहीं है साथ उम्र भर।।

दरअसल हमें माया-मोह से है बहुत गहरा लगाव पोर-पोर।
हर कदम ठोकर खाते हैं पर बढ़ते जाते सतत हम उसी पथ पर।।

हां कभी जब नाचते-नाचते फंस जाते हैं मंझधार की वर्तुल तरंगों पर।
तब एक बार मन-प्राण से,आस्था व्यक्त करते साकार-निराकार पर।।

बचा लो हे नाथ इस बार ना करेंगे दुष्कर्म कहते पुकार कर।
वो दयासागर,करुणानिधान पिघल जाता हमारी एक गुहार पर।।

पर फिर वही सिलसिला,चलता रहता अबाध गति से जीव का निरंतर।
हम रोते-कलपते,फंसे-झूलते प्रतिदिन इसी मनःस्थिति में रहते तत्पर।।

हम नहीं लाचार,तुच्छ,जाने क्यों नहीं विश्वास करते अपने आप पर।
हम ही तो हैं परम सत्ता के अग्रदूत इस पावन पवित्र भूमि पर।।

@नलिन #तारकेश

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