Monday 1 October 2018

कुछ हवा कुछ झाग

कुछ हवा,कुछ झाग वो बुलबुला मचलने लगा।
पल भर में ही देखिए मगर फना होने लगा।।

छोटे बच्चे सा था उसका दिल-ए-मासूम। मिला ना उसे इश्तियाक*तो सिसकने लगा।।
*अभिलाषा

कसता देखा जो शिकन्जा पुलिस का ।
खुद को बड़ा बीमार बताने लगा।।

मुत्तहिद*हो उसका गम बांटा तो।*मेलमिलाप
लिपट कर फफक वो रोने लगा ।।

नई नस्ल के देख कर वो हौंसले।
जवानी की उमर याद करने लगा।।

उसकी आंखों में अपना अक्स जो देखा।
रंग-बिरंगे सपने नए संजोने लगा।।

यूं तो कुछ है नहीं झूठ,फरेब के सिवा यहां। बेवजह "उस्ताद"मगर दस्तूर निभाने लगा ।।

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