Wednesday, 3 October 2018

हृदय मेरा जब से

हृदय मेरा जब से,निष्पापी-निर्मल राधा हुआ। तन मेरा नील-"नलिन",कृष्ण में रूपांतरित हुआ।।

देह थी मेरी और नहीं भी,ये आभास जब हुआ।
अप्रतिम,आलोकमय श्री गणेश जीवन का नूतन हुआ।।

जड़ चेतन में तो,चेतन का जड़ में उलटफेर हुआ।
प्रेम-सलिल सकल सृष्टि फिर,अनवरत गतिशील हुआ।।

तन-मन,हृदय-हंस,रोम-रोम अब आप्लावित हुआ।
कभी नर्तन,कभी मौन-ब्रह्मलीन परिचय आम हुआ।।

दुःख-सुख,कष्ट-मोद,बस जीवन पक्ष का
नाम-भेद हुआ।
आनंद ही आनंद बरसे,नित्य परमानंद हुआ।।

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