Friday, 16 February 2018

गजल-69:तेरे मिजाज की आवारगी

तेरे मिजाज की आवारगी कैसे कहूं।
तू रखता है कुछ नाराजगी कैसे कहूं।।

बहुत भटका किया राहों मैं इधर-उधर।
साथ मिल जाए ताजिन्दगी कैसे कहूं ।।

फूल ही फूल खिले चमन में हर तरफ।
कांटे पर मिले पेशगी कैसे कहूं।।

प्यार में कैसे-कैसे मुकाम आते हैं।
बता तो इसकी भला बानगी* कैसे कहूं।।
*उपमा

तू है मेरा खुदा तू ही महबूब है।
तू ना समझे तो जिन्दगी कैसे कहूं।।

पूछते हैं मिलने पर सब हाल-चाल मेरे।
ये तो बता दर्दे संजीदगी कैसे कहूं।।

एक तेरा आंचल ही सुकून मुझे देता है। "उस्ताद"है ये तेरी खासगी* कैसे कहूं।।
*राजा या मालिक आदि का

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