Friday, 27 October 2017

श्रद्धा-सबूरी की समझ "उस्ताद"होनी चाहिए

असल इबादत में रुमानियत होनी चाहिए
खुदा के वास्ते दिल में पीर होनी चाहिए।

दिल खोल बेझिझक बगैर लाग-लपेट के
बड़े इतमीनान उससे बात होनी चाहिए।

वो तो हंसता है हमारे ही होंठों से सदा
कोई रोनी सूरत उसे न दिखनी चाहिए।

हर तरफ बिखरा है मेरे हुजूर का ही नूर
बस इश्क में सराबोर ऑख होनी चाहिए।

दलील,तफतीश से कहाॅ पाओगे भला उसे
थोड़ी श्रद्धा-सबूरी"उस्ताद"होनी चाहिए।

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