Monday, 2 October 2017

जुगत जद्दोजहद से निजात की पता हो गयी

जुगत जद्दोजहद से निजात की पता हो गयी
राम-राम रटने से कश्ती अपनी पार हो गयी।

हर सांस जब चलती उसके रहमो करम से
गुरूरे इल्म की क्यों भला आदत हो गयी।

कुछ दस्तूर जमाने में अब हैं नये चल गये
हाथ मिला घोंपना छूरे बात आम हो गयी।

ये नेकी-बदी जो लगती हमको किसी की
इनायत-बेअदबी खुदाए फरमान हो गयी।

भुला के भी तो उसको भुला सकता नहीं
कमबख्त तस्वीरे रब दिल में चाक*हो गयी।

सुनी दिले धड़कन"उस्ताद"जिसने कभी
इबादते अमन तालीम उसकी पूरी हो गयी।

चाक*:दृढ

No comments:

Post a Comment