Sunday, 1 October 2017

हिन्दी का कमॆकान्ड हर साल हो रहा

हिन्दी का कमॆकान्ड तो हर साल हो रहा
बाजार मगर अंग्रेजी का बम-बम हो रहा।

गिटपिटाना नवजात अब घुट्टी में पी रहा
मादरे जुबाॅ का मगर पुरसा हाल हो रहा।

बुद्धिजीवी हर कोई बेभाव बिकने लगा
जाने कैसी आजादी का सवाल हो रहा।

जीते जी माॅ-बाप को पानी न दिया कभी
खुदगजॆ आशियाॅ मगर अब श्राद्ध हो रहा।

मासूम के साथ दरिन्दगी बता कैसे लिखें
पत्थर दिल कलेजा अब आम हो रहा।

काबिल"उस्ताद"की कौन पहचान करे
आरक्षित गधों का तो इस्तेकबाल हो रहा।

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