Monday, 26 September 2016

#शिवोहम (निर्वाणषट्कम #शंकराचार्य जी रचित का अनुवाद)-- शिव,शिव और शिव ही एक स्वीकार

न तो हूँ मैं मन,बुद्धि,चित्त,अहंकार 
न तो हूँ मैं स्वाद,घ्राण,दृश्य,गंधाधार 
न तो हूँ मैं व्योम,तेज़,वायु,अग्नि आकार 
मैं तो हूँ सदा-सदा ही आनंदागार
शिव,शिव और शिव ही एक स्वीकार।।१।।

न तो हूँ मैं प्राणाधार,न ही वायु पञ्च प्रकार 
न तो हूँ मैं  सप्त धातु,न ही पञ्च कोषागार 
न तो हूँ मैं पंचेंद्री ज्ञान,न ही पंचेंद्री कर्मविकार
मैं तो हूँ सदा-सदा ही आनंदागार
शिव,शिव और शिव ही एक स्वीकार।।२।।

न तो हूँ मैं राग-द्वेष,न ही लोभ,मोहाकार 
न तो हूँ मैं ईर्ष्या और न ही अहंकार 
न तो हूँ मैं धर्म,अर्थ न ही काम,मोक्षाकार 
मैं तो हूँ सदा-सदा ही आनंदागार
शिव,शिव और शिव ही एक स्वीकार।।३।।

न तो हूँ मैं पुण्य,पाप न ही सुख,दुःखागार
न तो हूँ मैं मन्त्र,तीर्थ न ही वेद,यज्ञाधार
भोजन भी नहीं हूँ मैं और न भोक्ता या उपभोग्यआगार   
मैं तो हूँ सदा-सदा ही आनंदागार
शिव,शिव और शिव ही एक स्वीकार।।४।।

न ही मुझमें डर-भय ,न ही जाति-भेद प्रकार 
न ही माता-पिता और न ही जन्म लेता आकार 
न ही कोई बंधु-बांधव न ही गुरु-शिष्य प्रकार 
मैं तो हूँ सदा-सदा ही आनंदागार
शिव,शिव और शिव ही एक स्वीकार।।५।।

मैं तो हूँ सदा-सदा ही निर्विकल्प और निराकार 
सभी इन्द्रियों की ममता से परे है मेरा आकार 
न ही हूँ मैं बंधन में और न ही मुक्ति विचार 
मैं तो हूँ सदा-सदा ही आनंदागार
शिव,शिव और शिव ही एक स्वीकार।।६।।


शिवोहम शिवोहम 
शिवोहम 




  
   


1 comment:

  1. आप की कविताओं में एक सच्चे भक्त की आत्मा की पुकार है I

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