Thursday 22 September 2016

पितरों को अपने समस्त अत्यंत विनीत भाव से

पितरों को अपने समस्त अत्यंत विनीत भाव से 
श्रद्धासुमनांजलि है सादर समर्पित इस काव्य से। 
पितृ-पक्ष प्रारम्भ होता कन्यागत सूर्य के आश्विन मास से 
पूर्णिमा से अमावस्या श्राद्ध करते हैं सभी अपने हिसाब से।
षोडस दिनों के पुर्वजों संग इस भावपूर्ण संवाद से
पितरों को हैं नमन करते कृतज्ञता और प्यार से। 
अपने शुभ कर्मों की बदौलत प्राप्त पुण्य राशि से 
पितर जीवन हैं संवारते हम सभी का स्वर्ग से।
भोजन खिला या दे सीता पितरों के निमित्त से 
कुछ उऋण होते हैं हम पितृ-ऋण या कर्तव्य से। 
भाव जगत की बात यूँ तो समझ न आयेगी मस्तिष्क से 
होता है पर इस बहाने स्मरण,वंदन,संवाद अपने पूर्वजों से। 
जो भी हैं हम आज वो मात्र अपने पितृ आशीष से 
बढ़ेगा ओज,बल नित्य हमारा पितरों को नमन से। 
पितर संतुष्ट होते हैं हमारे,तिल,कुशा,जलांजलि से 
वर्ष में बस एक बार,सो क्यों चूकें इस सौभाग्य से। 


  

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