बौने दिमाग को शहंशाह बताना चाहते हैं।।
एक दूसरे से लड़ा कर बेवजह ही हमको।
ये नकारे अपनी तिजोरी भरना चाहते हैं।।
खून करते हैं हर रोज़ जन भावनाओं का।
दूसरों पर मगर इल्जाम लगाना चाहते हैं।।
हद से ज्यादा हो गई बदमिजाज़ी अब तो।
कठपुतली ये आईन* को बनाना चाहते हैं।।*कानून
समझदार हो गए होंगे यूं तो आप अब तलक।
फिर भला क्यों मोहरा ए हाथ बनना चाहते हैं।।
"उस्ताद" जरा भी गैरत बची हो अगर हममें।
इनको बता दो हम आईना दिखाना चाहते हैं।।
नलिन "उस्ताद"
👍👍
ReplyDeleteFantastic
ReplyDeleteThank you 😊
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