मगर हो सामने तो देखना कैसे छोड़ दूं।।
हर बार खुद को बहुत समझाया है मैंने।
बन गई है जो आदत बता कैसे छोड़ दूं।।
पहलू में उसके बैठना किसको है गवारा नहीं।
सो तिलस्मी उसकी दुनिया भला कैसे छोड़ दूं।।
बला की है उसमें कशिश सच कहा तुमने।
थक हार उसके पहलू बैठना कैसे छोड़ दूं।।
"उस्ताद" भी जब हो गया है मुरीद उसका।
फेसबुक,इंस्टाग्राम का पीछा कैसे छोड़ दूं।।
Wah ustad 👍..kavita gazab h or uspe photo or b gazab👍👍👍
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThank you for lovely comments
ReplyDeleteThank you for your lovely comments 💖
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