Monday 26 August 2024

६८३:ग़ज़ल: एक बूंद शराब प्याले में छोड़ता नहीं

एक बूंद शराब प्याले में छोड़ता नहीं।
मेहनत की कमाई कभी फूंकता नहीं।।

वायदा यूं किसी से कभी हूं करता नहीं।
हां जो कर लिया तो फिर भूलता नहीं।।

जो मैं देख पा रहा आंखों से बस उतना।
दूर की उससे ज्यादा,यार सोचता नहीं।।

लिखा हो खत में नाम मेरा या रकीब का।
महज़ इससे ये होंसला कमतर होता नहीं।।

जब चल ही पड़े जानिब ए मंजिल को चूमने।
"उस्ताद" देर-सवेर से खास फर्क पड़ता नहीं।।

नलिन "उस्ताद"

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