Monday 19 August 2024

६७८: ग़ज़ल: मुझे ये जितना यकीं था वो मुझको मिलेगा जरूर

मुझे ये जितना यकीं था वो मुझको मिलेगा जरूर।
उससे ज्यादा पता था वो निकलेगा बेवफा जरूर।।

नई राह में कदम दर कदम आयेंगी दुश्वारियां ज़रूर।
हाथ की लकीरों को बदलने का रखना जज़्बा जरूर।।

यूं ही नहीं ख्वाब हकीकत का जामा पहन आयेगा।
जब घिसोगे एड़ियां निखरेगी किस्मते हिना ज़रूर।।

मिलने-जुलने में हर्ज तो नहीं है दोबारा अपने अतीत से।
वो करीब आए तो भी क्या यकीं?फासला मिटेगा ज़रूर।।

रेशमी जुल्फों के ये पेंचोखम जाल मकड़ी के‌ जैसे हैं।
सुलझाने जो निकलोगे "उस्ताद" तो उलझोगे ज़रूर।।

नलिन "उस्ताद"

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